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Tuesday, August 2, 2011

जज्बात ...

एक घर सपनों की 
न जाने मन में कब से बनाकर रखा हूँ 
उस घर की दीवार विश्वाश पर टिकी है 
मेरे आंसुओं से बनी है उसकी छत 
मेरे अरमानो की बगिया सजी है 
उस छोटे से घर में 
न जाने कितने बरस लगे हैं 
कुछ लोगों के झूठे स्नेह 
कुछ लोग मजाक उड़ाते हैं 
मेरे जज्बात ...को भी 
वो हंसी से नहीं ,बल्कि तानें दे - देकर 
ऊँची आवाज से चिढाते हैं 
उनके अतीत का मैं एक हिस्सा हूँ 
शायद भूल गए हैं वो मैं वही टहनी हूँ 
जिससे वो अपना 
आलिशान महल बनाये हुए हैं 

लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल "
युवा साहित्यकार ,पत्रकार 
कोसीर ...ग्रामीण मित्र !







6 comments:

  1. बहुत खूबसूरती से जज्बातों को व्यक्त किया है आपने...

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  2. आदरणीय ...Aseem Trivedi जी सप्रेम अभिवादन ...
    सबसे पहले मेरा अभिवादन स्वीकार करें ... मेरा पहला पोस्ट कविताबाज़ी पर ...जज्बात ...प्रस्तुत है ..
    मुझे सदस्यता प्रदान करने के लिए हार्दिक आभार ...
    इसी विश्वाश के साथ ..
    सादर
    लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल "
    ०९७५२३१९३९५

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  3. आदरणीया ...sushma 'आहुति' जी सप्रेम अभिवादन ...
    हार्दिक आभार ..
    सादर
    लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल "
    ०९७५२३१९३९५

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  4. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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  5. आदरणीय ...संजय भास्कर जी सप्रेम अभिवादन ...
    हार्दिक आभार ..

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  6. बहुत खूबसूरत....

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