छोटी सी चोट पर ही, लोग रोया करते हैं बहुत यूँ ही,
दूसरे का हक मरकर भी, खुश रहा करते हैं बहुत यूँ ही,
हम, सबको, अपना सब कुछ, देने से ही नहीं अघाते,
लोगों से जख्म पाने पर भी, हँसा करते हैं बहुत यूँ ही॥
चोट हो बच्चों के पत्थर की फल के लिए, तब तो हम,
उनकी आँखों में ख़ुशी देखकर, हँसा करते हैं बहुत यूँ ही,
गर हो जख्म लालची मनुष्य की कुल्हाड़ी का, तो हम,
ये अहसानफरामोशी देखकर हँसा करते हैं बहुत यूँ ही॥
हाँ और कुछ दिन जीने की चाहत तो हम भी रखते हैं,
इस दुनिया को और देने की चाहत तो हम भी रखते हैं,
हमें तो ये निर्दयी इंसान निचोड़ता रहता है बहुत यूँ ही,
और इसकी खुदगर्जी पर हम हँसा करते हैं बहुत यूँ ही॥
हम करें भी तो क्या, रब ने हिलने से मना जो किया है,
बोल भी नहीं सकते, उससे न बोलने का वादा जो किया है,
बस देख सकते हैं मानव से खुद को लुटते हुए बहुत यूँ ही,
और अपनी इन्ही मजबूरियों पर हँसा करते हैं बहुत यूँ ही॥
अनजाने में ये खुद को मिटाने की कोशिश किया करते हैं,
इन्हें सब कुछ पाने की हसरत रहा करती है बहुत यूँ ही,
हमें सब कुछ लुटाने की चाहत रहा करती है बहुत यूँ ही,
इन पर मुस्कुराने की आदत रहा करती है बहुत यूँ ही॥
नमस्कार जी,
ReplyDeleteये कविता बहुत पसंद आयी है,
sundar rachna, ped ki bat se bahut kuchh kah diya
ReplyDeleteSanjay Ji aur Sunil ji, Bahut bahut abhar aap dono ka utsaah badane ke liye.
ReplyDeletesanjay ji
ReplyDeletebahut hi shandaar lagi kavivarniraj dwidi ji ki yah kavita.bade hi khoobsurti ke saath ped ko madhyam bana karbahut kuchh gari baate kah dadli.
itni achhi rachna ke liye unhe v aapko hardik
badhai.
main aapke uprokt likhi baato se purntaya sahmat hun .
poonam
Bahut abhar poonam ji, hamare blog tak bhi ayiye, aur apna subhasheesh dijiye.
ReplyDelete