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Friday, August 26, 2011

इक पेड़ की हँसी






छोटी सी चोट पर हीलोग रोया करते हैं बहुत यूँ ही,
दूसरे का हक मरकर भीखुश रहा करते हैं बहुत यूँ ही,
हमसबकोअपना सब कुछदेने से ही नहीं अघाते,
लोगों से जख्म पाने पर भीहँसा करते हैं बहुत यूँ ही॥

चोट हो बच्चों के पत्थर की फल के लिएतब तो हम,
उनकी आँखों में ख़ुशी देखकरहँसा करते हैं बहुत यूँ ही,
गर हो जख्म लालची मनुष्य की कुल्हाड़ी कातो हम,
ये अहसानफरामोशी देखकर हँसा करते हैं बहुत यूँ ही॥

हाँ और कुछ दिन जीने की चाहत तो हम भी रखते हैं,
इस दुनिया को और देने की चाहत तो हम भी रखते हैं,
हमें तो ये निर्दयी इंसान निचोड़ता रहता है बहुत यूँ ही,
और इसकी खुदगर्जी पर हम हँसा करते हैं बहुत यूँ ही॥

हम करें भी तो क्यारब ने हिलने से मना जो किया है,
बोल भी नहीं सकतेउससे न बोलने का वादा जो किया है,
बस देख सकते हैं मानव से खुद को लुटते हुए बहुत यूँ ही,
और अपनी इन्ही मजबूरियों पर हँसा करते हैं बहुत यूँ ही॥

अनजाने में ये खुद को मिटाने की कोशिश किया करते हैं,
इन्हें सब कुछ पाने की हसरत रहा करती है बहुत यूँ ही,
हमें सब कुछ लुटाने की चाहत रहा करती है बहुत यूँ ही,
इन पर मुस्कुराने की आदत रहा करती है बहुत यूँ ही॥



5 comments:

  1. नमस्कार जी,
    ये कविता बहुत पसंद आयी है,

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  2. sundar rachna, ped ki bat se bahut kuchh kah diya

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  3. Sanjay Ji aur Sunil ji, Bahut bahut abhar aap dono ka utsaah badane ke liye.

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  4. sanjay ji
    bahut hi shandaar lagi kavivarniraj dwidi ji ki yah kavita.bade hi khoobsurti ke saath ped ko madhyam bana karbahut kuchh gari baate kah dadli.
    itni achhi rachna ke liye unhe v aapko hardik
    badhai.
    main aapke uprokt likhi baato se purntaya sahmat hun .
    poonam

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  5. Bahut abhar poonam ji, hamare blog tak bhi ayiye, aur apna subhasheesh dijiye.

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