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Monday, April 30, 2012

समझने की कोशिश करता हू जब हर बार लगती हों अनजान हों

क्या बात है बहुत परेशान हों 
बोलती तस्वीर सी सुनसान हों 

समझने की कोशिश करता हू जब 
हर बार लगती हों अनजान हों 

कुछ कहोगे ये सोचता हू जब भी 
झुक जाती हों बस ज़िन्दाजान हों 

मुझे लगता है तुम मेरे साथ हों 
और तुम किसी  की पहचान हों 

क्या कहू करता था या हू या कुछ भी नहीं 
'मनी'मेरे लिए अब तो बस एक मेहमान हों 
--------------------------------मनीष शुक्ल 






किरचों की तरह हटाया तुमने

क्यूं रिश्ता अपना मुझसे रेत सा बनाया तुमने।
और तमाम वायदों को कांच सा बनाया तुमने।

साथ रहना नहीं था तो टूट ही जाना था इसको,
 फिर क्यूं ऐसे ख्वाबों का महल सजाया तुमने।
 
वक्त   का  क्या,   बावफा  कब रहा है किसी का,
और वक्त  की तरह मुझको  आजमाया  तुमने।

तन्हाई के खराब मौसम में रिश्तों को सम्हाला मैंने,
दुपट्टे के कोरों से किरचों की तरह हटाया तुमने।
  
मेरे साथ ताउम्र रहने  की बात तुमने ही कही थी,
जोड़ना कभी, कितनी कस्मों को निभाया तुमने।


  • रविकुमार बाबुल

Saturday, April 21, 2012

रू-ब-रू


वो  पहली  किरण  और  तेरा  चेहरा  ,
बादलों  में  भी   उभर   आई   तेरी  ही  तश्वीर ,
हर  सांस  तेरे  बोलों  पर  थिरकने  लगी ,
तेरे  याद   में  वादियाँ  महकने  लगी ,

 सूरज  की  लालिमा  ने  तेरे  माथे  की  बिंदिया  की  यादें  दिलाईं  ,चहकने  लगे   पंची   जैसे   तेरी  चुरियाँ  मुझे   जगाने  आयीं  ,
शाख  के  पत्ते  झूमने  लगे  ,
होने  लगा   तेरे  पायलिया   का  गुमान ,
मिटटी   की  सोंधी  खुशबू  से  बरबस  आया
तेरे  हथेलियों  की  हिना  का  ध्यान  ,

 और   तभी  एक  पुरवैय्या  आई
और  एक सुंदर  ख्वाब  टूट   गया  
और  सामने  ज़िन्दगी  रू-ब-रू   करने  आ  गयी  थी मुझसे ...

Monday, April 16, 2012

"मेरी ज़िन्दगी...."



कि सावन में भी प्यासी मेरी ज़िन्दगी...
अँधेरे कि तरह सुनसान मेरी ज़िन्दगी...
उस धुएं कि तरह लापता मेरी ज़िन्दगी...
अपने ही जाल में फ़सी मेरी ज़िन्दगी...!!!!

कि सरीफ़ों के महफ़िल में बदनाम मेरी ज़िन्दगी...
भूखे और प्यासे जैसी लाचार मेरी ज़िन्दगी...
कि न्याय और धर्म के बीच लटकती मेरी ज़िन्दगी...
कि जिंदा है जिस्म, पर रूह से मरी मेरी ज़िन्दगी...!!!!

वसंत में भी सूखे सी जंजर मेरी ज़िन्दगी...
मिट्टी के घरोंदों सी कमजोर मेरी ज़िन्दगी...
अमावश में सन्नाटे से चीखती मेरी ज़िन्दगी...
कि हर तरफ है हरियाली पर, वीरान मेरी ज़िन्दगी...!!!!

तन्हाईयों से लिपटी बेजान  मेरी ज़िन्दगी...
कि कोयला भी तप कर हिरा बन जाता है...
पर उस कोयले से लिपटी कारीख मेरी ज़िन्दगी...
कि नग्न पड़ी लाश, बिन कफ़न मेरी ज़िन्दगी....!!!!!!

----राहुल राज

Monday, April 9, 2012

हर लफ़्ज़ का आईना

अपने हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा.
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा..

तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा भी नहीं.
मैं गिरा तो मशाल बनकर खड़ा हो जाऊँगा..

tere dast-e-sitam

tere dast-e-sitam kaa ajz nahii.
dil hii kaafir thaa jis ne aah na kii......

Friday, April 6, 2012

फिर जिंदा हो...




इस  किस्तों वाली मौत को 
एकमुश्त मौत दे दो 
फिर खुशियों वाले ब्याज पर 
एक नयी जिंदगी लो
एक सही जिंदगी लो 
फिर जिंदा हो 
फिर जिंदा हो 

क्या खूब मुखौटा पहने है 
क्या खुद पर पर्दा डाला है 
है चमकती पट्टी आँखों पर
समझे खुद को निराला है 
ये झूठ के  परों को कतरों ज़रा 
फिर छूना सच के आकाश को 
अब छोडो, दुनिया के खौफ को 
इस  किस्तों वाली मौत को 
एकमुश्त मौत दे दो 
फिर खुशियों वाले ब्याज पर 
एक नयी जिंदगी लो
एक सही जिंदगी लो 
फिर जिंदा हो 
फिर जिंदा हो 

मन में रखे आईने को 
सही सूरत दे दो, जीने को 
देख दूजों की चकाचौंध 
क्यों खुद पर शरमाते हो 
इस उतरन को उतार फेकों 
फिर अपनी असल चमक देखो 
क्यों गीले कोयले से सुलगते हो 
इस  किस्तों वाली मौत को 
एकमुश्त मौत दे दो 
फिर खुशियों वाले ब्याज पर 
एक नयी जिंदगी लो
एक सही जिंदगी लो 
फिर जिंदा हो 
फिर जिंदा हो 

Thursday, April 5, 2012

"मेरी लाचारी या तुम्हारे लिए मेरा प्रेम..."????


मैं तुम्हें भुलाने की रोज़ कोशिश करता हूँ...
विश्वास  मानो मेरा..
के खुद को तुम्हारे ख्यालों से बहुत दूर ले जाऊं 
ये रोज़ कोशिश करता हूँ...

पर---
तुम्हें दिल से निकलता हूँ तो तुम दिमाग में बस जाती हो...
        दिमाग से निकलता हूँ तो तुम जिस्म में बस जाती हो...
        जिस्म से निकलता हूँ तो तुम निगाहों पे बस जाती हो...
        निगाहों से निकलता हूँ तो हूठों पे बस जाती हो...!!!

पता नहीं आज क्या हो चला है...
दिल आज क्यूँ बहक रहा है...
रातें सुलग रही हैं
दिन क्यूँ चहक रहा है....!!!

क्यूँ आज फिर दिल बच्चा हो जाने को करता है..
क्यूँ आज फिर तुमसे लिपट कर रोने को दिल करता है...
क्यूँ आज फिर तुम्हारे नाम पर मुस्कुराने को दिल करता है...
क्यूँ आज फिर तुम्हारे गोद में सर रखकर सोने को दिल करता है...
क्यूँ आज तुम्हारे आखों में डूब जाने को दिल करता है...
क्यूँ आज तुम्हारे बातों में खो जाने को दिल करता है...!!!!???

क्यूँ आज तुम्हे जी भर कर देखने का मन हो रहा है मुझे...
क्यूँ आज तुमसे मिलने का मन हो रहा है मुझे...
क्यूँ आज फिर तुम्हे i love u  कहने को दिल चाहता है...
क्यूँ आज फिर तुमसे i love u  सुनने को दिल चाहता है...
क्यूँ आज फिर तुम्हे छुने को दिल चाहता है...
क्यूँ आज फिर तुम्हारे लिए घंटो इंतज़ार करने को दिल चाहता है...!!!!???

क्यूँ आज फिर अच्छा पहनने को दिल चाहता है...
क्यूँ आज  फिर अच्छा दीखने को दिल चाहता है...
क्यूँ आज फिर से बारिश में भीगने को दिल चाहता है...
क्यूँ आज फिर से सपने बुनने को दिल चाहता है...
क्यूँ आज फिर से मुस्कुराने को दिल चाहता है...!!!!???

क्यूँ आज फिर से ज़िन्दगी पे खुश होने को दिल चाहता है...
क्यूँ आज फिर बाहें फैलाकर गाने को दिल चाहता है...
क्यूँ आज फिर से तुमसे प्यार करने को दिल चाहता है...
क्यूँ आज फिर से जीने को दिल चाहता है...!!!!????

आज शायद अपने दिल पर मेरा कोई काबू नहीं...
आज शायद अपनी भावनाओं पर मेरा कोई वश नहीं...

के दिल तो बच्चा होता है...
और गलतियाँ कर बैठता है...

पर पता नहीं...
तुम मेरी इन गलतियों का क्या निष्कर्ष  निकालोगे---
"तुम्हारे लिए मेरा प्रेम या मेरी लाचारी... "
ये तो तुम ही मुझे बतलाओगे  !!!

Monday, April 2, 2012

सिर्फ तुम ही हर बार लौट कर क्यों आती हों

सिर्फ तुम ही हर बार लौट कर क्यों आती हों 
आखिर तुम क्यों इतना सब कुछ सिखलाती हों 
'मनी' क्यों इतनी वफादार हों तुम '''''''''समस्या      
-------------------------------------मनीष शुक्ल