क्यूं रिश्ता अपना मुझसे रेत सा बनाया तुमने।
और तमाम वायदों को कांच सा बनाया तुमने।
साथ रहना नहीं था तो टूट ही जाना था इसको,
फिर क्यूं ऐसे ख्वाबों का महल सजाया तुमने।
वक्त का क्या, बावफा कब रहा है किसी का,
और वक्त की तरह मुझको आजमाया तुमने।
तन्हाई के खराब मौसम में रिश्तों को सम्हाला मैंने,
दुपट्टे के कोरों से किरचों की तरह हटाया तुमने।
मेरे साथ ताउम्र रहने की बात तुमने ही कही थी,
जोड़ना कभी, कितनी कस्मों को निभाया तुमने।
और तमाम वायदों को कांच सा बनाया तुमने।
साथ रहना नहीं था तो टूट ही जाना था इसको,
फिर क्यूं ऐसे ख्वाबों का महल सजाया तुमने।
वक्त का क्या, बावफा कब रहा है किसी का,
और वक्त की तरह मुझको आजमाया तुमने।
तन्हाई के खराब मौसम में रिश्तों को सम्हाला मैंने,
दुपट्टे के कोरों से किरचों की तरह हटाया तुमने।
मेरे साथ ताउम्र रहने की बात तुमने ही कही थी,
जोड़ना कभी, कितनी कस्मों को निभाया तुमने।
- रविकुमार बाबुल
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