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Thursday, February 21, 2013

मनी' दूर हू पर मेरी हर रोज माँ से बात होती है , ताजुब है मेरी आवाज से मै कैसा हु बताती है ''माँ

मनी'मेरे आने की आहट भर से 
झट दरवाजे पे आ जाती है ''माँ

बुरे लोगो के संग जब देखती मुझको
मनी'डाटती मारती और रूठ जाती है ''माँ

मनी'खूब खेलने पर पापा भूखे रहने की सजा देदे या खूब डाटे
पापा को मानती भूखी रहती पर खाना मेरे संग में खाती है ''माँ

इतनी प्यारी इतनी भोली मेरे सब दर्द ले जाती
गर कभी नींद न आए मनी' लोरी सुनाती है ''माँ

मनी' दूर हू पर मेरी हर रोज माँ से बात होती है
ताजुब है मेरी आवाज से मै कैसा हु बताती है ''माँ

***********************मनीष शुक्ल 

Saturday, February 16, 2013

अरे, तुम तो हंस के भूल जाओगे, हमने यूं खुद को क्यूँ डुबो डाला



रात आँखों से बरसी थी शबनम
सुबह बारिश ने सब भिगो डाला

तुम्हें पाने की इक जुस्तजू में
देखो, वजूद भी हमने खो डाला

एक उलझन नहीं सुलझी हमसे
दिल की माला में सब पिरो डाला

चलो, अब बात ही कर ली जाए
दिल में इतना ही जब संजो डाला

अरे, तुम तो हंस के भूल जाओगे
हमने यूं खुद को क्यूँ डुबो डाला

शुभांगिनी राजपूत
(अपनी सखी मानसी की प्रेरणा से लिखी रचना )


Friday, February 15, 2013

दुविधा


मेरे कमरे में अब
धूप नहीं आती
खिड़कियाँ खुली रहती हैं
हल्की सी रौशनी है
मन्द मन्द सी हवा
गुजरती है वहाँ से
तोड़ती है खामोशी
या शुरू करती है
कोई सिलसिला
किसी बात के शुरू होने
से खतम होने तक का ।
कुछ पक्षी विचरते हैं
आवाज़ करते हैं
तोड़ देते हैं अचानक
गहरी निद्रा को
या आभासी तन्द्रा को ।
कभी बिखरती है
कोई खुशबू फूलों की
अच्छी सी लगती है
मन को सूकून सा देती है
पर फिर भी
नहीं निकलता
सूनापन वो अकेलापन
एक अंधकार
जो समाया है कहीं
किसी कोने में ।
©दीप्ति शर्मा


अकेला प्रेम....सौ बोलियाँ ...हज़ार तराजू

..अकेला प्रेम।।
इन दिनों,
एक फुफकारते नाग सा
मणि तलाश रहा है
जिसे वो
एक अप्सरा के माथे पर
जड़कर भूला था,
आजकल
वो टटोलता है
हर माथा,
खोजता है वही
चमकदार
अनमोल मणि
कभी
ज्ञान के सम्मोहन से
कभी रूप
कभी बुद्धि से
कभी अनजान
कभी दीवाना बनके
लगाता है हज़ार बोलियाँ
पहुंचता है
औरतों के माथे तक
अफ़सोस....
ये वो अप्सरा नहीं
जो माथे पर
प्रेममणि मढ़कर
भाग रही है
खुद को बचाने के लिए
बाज़ार के जौहरियों से.....
औरत जात जो ठहरी।।।
(अकेला प्रेम।।। ....सौ बोलियाँ।।।। ...हज़ार तराजू ।।।)
Mansi Mishra

Sunday, February 10, 2013


ख्वाबो में मै जिसको देखा करता था 

 तुम्हे देख वो ख्वाब हकीकत लगता है

 ऐसा क्या जादू है तुममे

जब भी देखू मै तुमको तो मन करता है

यही रहू मै

यही का वासी हो जाऊ .

(किसी बड़े कवी ने कहा है की अगर जीवन को कविता में कह दो तो वो संसार की सबसे बड़ी कविता बनती है )

Friday, February 1, 2013

जंगल में गूंजी सिसकी


भरी दुपहरी 

खुली मशहरी

मच्छर करते गुन गुन गुन 

चिड़ियाँ दाना चुगना भूलीं 

करतीं रह गयीं, चूं  चूं  चूं 

लार बहाते, कुत्ते भौंकें 

जंगल देखे जंगल चौंके 

हड्डी नोंचें चिड़िया की

जंगल में गूंजी सिसकी 

उसकी सिसकी गूंगी थी 

या जंगल की दुनिया बहरी थी 

देख चिरैया की हालत 

खौफ जंगल में फ़ैल गया

और कुत्तों की जुबानों ने 

एक नए गोश्त का स्वाद चखा 

और इधर जंगल में सारे शेर शर्मिंदा हैं 

जंगल में आज भी वहशी कुत्ते जिंदा हैं