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Monday, May 30, 2011

कुछ रचनाएं



सच

मैं अपना सच,
छिपा नहीं पाया?
तुम अपना सच
कही नहीं पाये?
आओ हम दोनों आज,
अपने-अपने सच को,
अपनी अंजुरी में रख कर,
अपनी मुहब्बत का अभिषेक करें
तुम मुझे प्रसाद बना देना,
और खुद प्रार्र्थना हो जाना?

प्यार

जिससे मिला नहीं कभी,
उससे प्यार कर बैठा?
जिससे मिलना हुआ मेरा,
उससे भी प्यार कर बैठा?
तुम ही बतलाओ,
किस प्यार के साथ चलूं मैं?
वह जो दूर है,
शायद न चले साथ मेरे।
या वह जो साथ है,
पर शायद न चले साथ मेरे?

नाम

मैंने कभी नहीं लिखा,
उसको दिये तोहफे पर,
अपना नाम।
देखकर मेरा तोहफा,
ताउम्र लिखती रहे,
वह मेरा नाम।
यह कोशिश,
जरूर की है मैंने।

साया

जब हर साया तेरे जैसा है,
फिर तेरा साया खास क्यूं है?
मेरी जिंदगी ने पूछा कई बार,
बस वह शख्स ही खास क्यूं है?

शब्द

भूल गया था अक्षर जोडऩा,
जब तुम जुड़े, सब जुड़ चला।
शब्द की हामी भर लो तुम,
पूरा वाक्य मैं रच लूंगा?

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रविकुमार बाबुल, ग्वालियर
093026 50741

Wednesday, May 25, 2011

मेरा साया


खुद में गुम मेरा साया ,
हो कोई जैसे रंग समाया |

मुग्ध हो कुछ राग अलापे ,
मगरूर हो मंजिल तलासे ,
खुद में गुम मेरा साया ,
हो कोई जैसे रंग समाया |

सुर्खी लिए होंठो पर अपने ,
नये द्रष्टिकोण को अपनाया ,
प्रभात का ये उजियारा ,
खुद में गुम मेरा साया ,
हो कोई जैसे रंग समाया |

सहजभाव से ले संकल्प ,
कुछ क्षण में हैं मूक स्वर ,
उन स्वरों से उऋण,
जिजीविषा को थामे ,
खुद में गुम मेरा साया ,
हो कोई जैसे रंग समाया |
 -दीप्ति शर्मा 

Tuesday, May 24, 2011

वो अपना है बहुत अपना है पर अपनी तरफ नहीं है ,,


वो अपना है बहुत अपना है पर अपनी तरफ नहीं है 
फैसला करना तो आया फैसला अपनी तरफ नहीं है 

मैंने जो खाव्ब देखे थे उसके लिए वो मेरी हद में है 
पर न वो न उसका कोई ख्वाब अपनी तरफ नहीं है


दिल दुखता है मेरा जब सोचता हू उसके लिए 
की वो बहुत अपना है पर अपनी तरफ नहीं है 

 मुझको जो पसंद है वो उसको पसंद नहीं 
उसको जो पसंद है वो अपनी तरफ नहीं है 

आज मै भी बहुत मजबूर हू कुछ कह नहीं सकता 
'मनी'वो बहुत खुश है खुशी पर अपनी तरफ नहीं है 




….. क्या तुम्हें पता है, कि तुम एक जादूगरनी हो !!

 
सच ! तुम हसीन
बेहद ख़ूबसूरत हो
जब तुम्हें देखता हूँ
तो सिर्फ देखते रहता हूँ
तुम्हारी आँखें
उफ्फ़ ! क्या कहूं
अजीब-सी कशिश
अजीब-सा जादू है
जब भी मुझे
देखती हैं ! उफ्फ़
अपना बना लेती हैं !
हाँ ! याद है मुझे
जब तुमने मुझे
पहली बार देखा था
बस ! उसी पल
तुमने मुझे, न चाहकर भी
अपना बना लिया था
वो दिन या आज का दिन
मैं तुम्हारी आँखों के
इर्द-गिर्द ही हूँ
सच ! क्या तुम्हें पता है
कि तुम एक जादूगरनी हो !

शायद ! नहीं
ठीक है, अच्छा ही है
तुम अंजान हो
तुम्हें यह ही यकीं है
कि मैं तुम्हें
बे-इम्तिहां चाहता हूँ
सच ! चाहता तो हूँ
पर अनोखा सच तो
तुम्हारी आँखों का जादू
खैर ! जाने दो
मुझे तो सिर्फ इतना पता है कि मैं तुम्हें बेहद
बे-इम्तिहां चाहता हूँ !! 
चित्र :- ( गूगल से साभार  )
हमारे मित्र  श्याम कोरी  जी की रचना उम्मीद है पसंद आएगी आपको 

Thursday, May 19, 2011

दिल भी गया नजरे गयी वफ़ा भी गयी,,,


डूबे हुए है आज कल वो किसके ख्याल में
फसते ही जा रहे हो जैसे दिलो जाल में 

क्या कर रहे वो कुछ जानते नहीं
बस उलझे हुए वो अपने सवाल में

दिल भी गया नजरे गयी वफ़ा भी गयी
पर बहुत खुश है वो घुस के बवाल में

सब कुछ समझ चुके पर मानते नहीं
बस मस्त है वो अपने इस खेलखाल में

बहुत मजे में है न उनको समझाओ
'मनी' रहने दो छोड़ दो उनके हाल में
......................मनीष शुक्ल


Wednesday, May 18, 2011

शब्दों का प्रसाद

रविकुमार बाबुल

हर रोज,
कुछ शब्दों की पुडिय़ा,
बना कर,
रख लेता हूं,
तुम्हारे लिये।
कभी किसी रोज,
मंदिर जाना हुआ मेरा,
और तुम मिल गये,
सब चढ़ा दूंगा
तुम पर।
मिन्नतें भी तुमसे थीं,
मन्नतें भी तुमसे।
मन का हुआ,
तब मान लूंगा,
मेरे देवता ने सुन लिया,
और न हुआ तब भी,
तुम्हें नहीं,
दोष अपने नसीब को दूंगा।
पर तुम पर चढ़ा कर मैंने,
जिन शब्दों को,
करके पवित्र, बना लिया है प्रसाद,
जिन्दा रहने तक बांटता रहूंगा,
अगले जन्म के पुण्य की खातिर,
तुम्हारी यादों की तरह।

मैं कभी नहीं लौटूंगा

रविकुमार बाबुल

थक गया हूं बनाते-बनाते,
अब नहीं बनता है,
रेत का घर,
मुझसे मेरे शहर में।
कुछ यादें या रेत,
छोड़ कर जा रहा हूं मैं,
पास तुम्हारे।
बना लेना,
तुम इससे अपने लिये,
खुशी का एक घर।
घर के आंगन में रख देना,
तुलसी के गमले में
शालिग राम की-सी,
यादें मेरी।
मैं दरिया बनकर,
बह निकल जाऊंगा।
तुमसे बहुत दूर,
तुम्हारे लिये
किनारा रेत का छोड़ कर।
अपने मुताबिक लिख लेना,
तुम मनचाहा नाम इस पर।
मैं कभी नहीं लौटूंगा,
तेरे लिखे नाम पर अपना नाम लिखने,
नदी की तरह।

Tuesday, May 17, 2011

मैं इंतजार करूंगा तुम्हारा


रविकुमार बाबुल

नींद में कुछ ख्वाब,
पलटते रहे मुझे,
और कुछ पुरानी यादें,
मुझे सहलाती रही।
मेरे अश्क तेरे अक्स में,
भींग गये भीतर तक।
तुम फिर भी सूखी रहीं,
तपती दोपहरी की तरह।

परिदें लौटते हैं शाम को
यह सुन चाहा था मैंनें,
तुम्हें चिडिय़ा बनाना।
तुम चिडिय़ा बन जाना,
और लौटके आना सांझ तक,
मैं इंतजार करूंगा तुम्हारा,
दिल के आंगन में
तुम्हारी चहचहाट सुनने को?

मुझसे लड़ता रहता है


रविकुमार बाबुल

वो शख्स आजकल कुछ परेशां रहता है।
कहता नहीं कुछ मुझसे, चुप रहता है।

कुछ ख्वाब, कुछ ख्वाहिशें होगीं उसकी भी,
कागज पर जाने क्या बुनता रहता है।

जो कहा सच नहीं, लिखा सच नहीं,
सच की खातिर मुझसे लड़ता रहता है।

तपते मौसम में, तुम ठण्डी छांव मेरी,
गुम-सुम सा मेरे साथ चलता रहता है।

मेरी हथेली में यकीनन तेरा नाम था,
वक्त रोज नये बहाने गढ़ता रहता है।

Saturday, May 14, 2011

इंतज़ार में तेरे...



इंतज़ार में तेरे ...शब्द मोती से बन गए
ये है तेरी दुआ ........या उसकी मेहर है
कि तुझसे मिला ......ये उसका असर है
जानते है सब .............सबको खबर है
पर तू जान के भी .........क्यों बेखबर है
ये है तेरी दुआ ........या उसकी मेहर है

इकरार में तेरे ..कितने मौसम बदल गए
पर तू भोर मेरा .........तू दोपहर है
कि हूँ आज तनहा...... तू हमसफ़र है
एक झील था मैं...........तू एक लहर है
सब मुझको देखें .........तू मेरी नज़र है
ये है तेरी दुआ ........या उसकी मेहर है

................कुछ फ़र्ज़ भी निभाना है


कुछ काम भी करना है कुछ फ़र्ज़ भी निभाना है ,
खुद को मिटा कर भी ये देश बचाना है |
 जो दुश्मन सीमा पर है उसे मिटा देंगे 
गद्दार जो अन्दर है उनको भी मिटाना है |
कोई धर्म या मजहब हो सब भाई भाई हैं
रूठे हुए भाइयो को सीने से लगाना है |
ये देश सलामत है तो हम भी सलामत है ,
हर देश के वासी को यह याद दिलाना है |
भूंखा न रहे कोई न कोई नंगा हो
ये काम मुश्किल
है  पर करके दिखाना है |
खेतो में हमारे भी सोने के खजाने है ,
इक फसल
मोहब्बत की दिल में भी उगाना है |
ये गर्व हो हर इक को भारत का मै वासी हूँ
इस शान से जीने का अंदाज सिखाना है !


..........संजय भास्कर

Sunday, May 1, 2011

कलम



ये  मेरे साथ रहती है
और सारे दर्द सहती है
पर जिन्दगी से इसे
बहुत हैरानी है
ना ही हँसती ना ही रोती
ये लिखती मेरी कहानी है|
  वो अल्फ़ाज मेरे
  दिल की धडकन के
  सब इसकी जुबानी है
  ये लिखती मेरी कहानी है |
निगरा समझ वो मेरा
सारा जहाँ  बताती है
समझ मुझे लिखा उसने
ये उसकी मेहरबानी है
ये लिखती मेरी कहानी है|
  रुके हुए कुछ झुके हुए
  मेरे अश्कों में उसकी
  हर वक्त निगरानी है
  जब इसकी जुबानी है
  ये लिखती मेरी कहानी है |

-दीप्ति शर्मा