हो कोई जैसे रंग समाया |
मुग्ध हो कुछ राग अलापे ,
मगरूर हो मंजिल तलासे ,
खुद में गुम मेरा साया ,
हो कोई जैसे रंग समाया |
सुर्खी लिए होंठो पर अपने ,
नये द्रष्टिकोण को अपनाया ,
प्रभात का ये उजियारा ,
खुद में गुम मेरा साया ,
हो कोई जैसे रंग समाया |
सहजभाव से ले संकल्प ,
कुछ क्षण में हैं मूक स्वर ,
उन स्वरों से उऋण,
जिजीविषा को थामे ,
खुद में गुम मेरा साया ,
हो कोई जैसे रंग समाया |
-दीप्ति शर्मा
bhut hi sunder bhaavabhivakti..
ReplyDeleteआपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना है
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर भी आये मेरे ब्लॉग पर आने के लिए "यहाँ क्लिक करे"