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Wednesday, May 25, 2011

मेरा साया


खुद में गुम मेरा साया ,
हो कोई जैसे रंग समाया |

मुग्ध हो कुछ राग अलापे ,
मगरूर हो मंजिल तलासे ,
खुद में गुम मेरा साया ,
हो कोई जैसे रंग समाया |

सुर्खी लिए होंठो पर अपने ,
नये द्रष्टिकोण को अपनाया ,
प्रभात का ये उजियारा ,
खुद में गुम मेरा साया ,
हो कोई जैसे रंग समाया |

सहजभाव से ले संकल्प ,
कुछ क्षण में हैं मूक स्वर ,
उन स्वरों से उऋण,
जिजीविषा को थामे ,
खुद में गुम मेरा साया ,
हो कोई जैसे रंग समाया |
 -दीप्ति शर्मा 

3 comments:

  1. आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !

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  2. बहुत ही अच्छी रचना है
    मेरे ब्लॉग पर भी आये मेरे ब्लॉग पर आने के लिए "यहाँ क्लिक करे"

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