रविकुमार बाबुल
वो शख्स आजकल कुछ परेशां रहता है।
कहता नहीं कुछ मुझसे, चुप रहता है।
कुछ ख्वाब, कुछ ख्वाहिशें होगीं उसकी भी,
कागज पर जाने क्या बुनता रहता है।
जो कहा सच नहीं, लिखा सच नहीं,
सच की खातिर मुझसे लड़ता रहता है।
तपते मौसम में, तुम ठण्डी छांव मेरी,
गुम-सुम सा मेरे साथ चलता रहता है।
मेरी हथेली में यकीनन तेरा नाम था,
वक्त रोज नये बहाने गढ़ता रहता है।
वो शख्स आजकल कुछ परेशां रहता है।
ReplyDeleteकहता नहीं कुछ मुझसे, चुप रहता है। bhut khub...
आदरणीय सुषमा जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
मेरे लिखे पर अपने विचार जतलाने के लिये शुक्रिया।
रविकुमार बाबुल