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Thursday, January 27, 2011

यहाँ फंतासी कुछ भी नहीं दोस्त ,,,,,,,,,,,

आपसे बे पनाह चाहत है मुझे 
सिर्फ हस दो इतने से राहत है मुझे 

यहाँ फंतासी कुछ भी नहीं दोस्त 
बस आपकी ही आदत है मुझे 

आपके दिल में भी कही हु मै 
ये सोचके बड़ी हैरत है मुझे 

सारे सहर में चर्चा है मेरा अब 
ये आपकी ही सोहरत है मुझे 

आपको चाह के गुनाह नहीं किया मैंने 
"मनी"बता दो पाक  मोह्हब्ब्त है मुझे 
......................मनीष शुक्ल 

Wednesday, January 26, 2011

एक दिन ही की तो बात थी........!


मैं उनसे कुछ कह न सका
एक दिल की ही तो बात थी
चंद पल बिता न सके वो मेरे संग
एक दिन ही की तो बात थी
दुख तो आज हो रहा है यारो
जो वो जनाजे में भी न आए
आखिर एक दिन ही तो बात थी !

...............संजय भास्कर  
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

Tuesday, January 25, 2011

. सबसे प्यारा वतन हमारा जो है सबसे न्यारा न्यारा .......




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सबसे प्यारा वतन हमारा 
जो है सबसे न्यारा न्यारा
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राम कृष्ण महापुरुसो को भी ये है सबसे प्यारा 
रामायण गीता पुराण का नही यहा  बटवारा 
गंगा यमुना सरस्वती भारत प्रतीक कहलाते 
हम उस देस के रहने वाले व्हा कि बात बताते
चंदशेखर आजाद भगत सिंघ  ने दे दि जान यहां पर  
उनको कर सत सत प्रणाम उनके दीप जलाये यहा पर
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सबसे प्यारा वतन हमारा 
जो है सबसे न्यारा न्यारा 
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बच्चो को प्यार बडो को आदर बुजुर्गो का सम्मान यहा पर
हम सब बच्चो को मिले ये सारे संस्कार यहा  पर
कल्पना चावला शेवता ने अंतरीक्ष  मे शान बढआइ है 
रानी लक्ष्मी बाई चेन्न्मा देश कि खातीर अपनी जान गवाई है 
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ताज महल है प्रेम प्रतीक 
और लाल किला है वीरो का घर है 
देश कि चोटी यहा हिमालय जिसका सागर पग धोता है
काश्मीर है स्वर्ग हमारा जिस पर गर्व सभी को होता है 
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सबसे प्यारा वतन हमारा 
जो है सबसे न्यारा न्यारा 
...............मनीष शुक्ला   

Sunday, January 23, 2011

ख़ाम खा किस्मत अजमा रहे है आप ,,,,,,,,,,,,

क्यों सबसे नजरे चुरा रहे है आप
क्यों खुद से दूर जा रहे है आप

बड़ी बेचैन सी है ये नजरे आज
इनसे किसको देखे जा रहे है आप 

कभी इश्क को आवारगी कहा करते थे 
क्यों खुद ही भूले जा रहे है आप 

सिला दुआ करम ये किताबो में ही अच्छे है 
क्यों इनमे फसते जा रहे है आप

'मनी'सलाह मानिये लौट जाइये ये मोहब्बत है 
ख़ाम खा किस्मत अजमा रहे है आप 
  ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,       ..मनीष शुक्ल 
 


Friday, January 21, 2011

झूठ के हैं फैशन शोज़

सच outdated है 
अब झूठ  के हैं फैशन शोज़;
तो सच के लिए करेगा 
कौन यहाँ किच-किच रोज़;
अब कदम ताल करनी है
दुनिया के साथ गर 
झूठ नहीं बोलोगे 
तो बोलोगे भी क्या ;


नई हुई दुनिया के नए हैं ये सच 
चाहेगा भी तो कौन इनसे निकलेगा बच 
आज जो भी  सच्चा है 
कल रहेगा क्या;  


सीप को मोती कहो 
पत्थरों को हीरे 
लहर नहीं आज प्यारे 
नदियों के तीरे 
दिमाग ही लगाओ अब 
दिल चीज़ क्या;


दिल से जो चाहोगे 
मिल ही जायेगा
सच्ची हो चाहत 
फूल खिल ही जायेगा 
फंतासी है रील सच ये,
रियल इसमें क्या;


कभी कुछ सोचूँ 
तो कभी कुछ और 
जिसके सिर पर मौर नहीं 
वही आज सिरमौर 
practical , professional बनो 
emotional होना न ;


आदर्शों कि मिर्ची अब 
खाना कौन चाहे 
मिलता हो जब 
फास्टफूड गाहे-बगाहे 
अब खो गये हैं अबाबील 
और गाती नहीं बया ........... 

बुढापा भी ख़ुशी ख़ुशी बीत जायेगा...


एक बार जो बोल लोगे हंस के उनके साथ 
बुढापा भी उनका ख़ुशी ख़ुशी बीत जायेगा... 
ये तो चली आई है परम्परा सदियों से जो आया है 
वो तो समां बीत ही जाएगा...

 बहुत दिनों से ब्लॉग पर कविता लिख रहा था पर धीरे धीरे समय की कमी के कारण  कविता नहीं लिख पाया इसीलिए आज कुछ लाइन पेश है.. .उम्मीद है आपको पसंद आएगी !

Thursday, January 20, 2011

........ याद आ रहा है वो जमाना वो वालिया की चाय वो मौसम सुहाना .........


याद आ रहा है वो जमाना
वो वालिया की चाय
वो मौसम सुहाना
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सारी सारी राते पब में बिताना
दोस्तो के संग बिलियर्ड्स खेलना
ब्रिटनी व् शकीरा का दीवाना होना
टॉम क्रूज़ की तरह स्टाइल मारना
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याद आ रहा है वो जमाना
वो वालिया की चाय
वो मौसम सुहाना
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कभी इंडिया गेट तो कभी साउथ एक्स जाना
बाइक पे ड्रिप स्टंट ओ लहरा के चलाना
वो पार्टी में डांस राक आन के गाने गाना
वो दोस्तों के संग जिम जाना और सरते लगाना
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याद आ रहा है वो जमाना
वो वालिया की चाय
वो मौसम सुहाना
....................................................................................
गर्लफ्रेंड को मूवी दिखाना उसके सामने लड़की देखना
फिर उसको चिढाना उसके नखरे ओ बाबा अब उसको मानना
उसकी एक smyle पे सबकुछ लुटाना
वो mac-डी का पिज्जा मगाना
वो बहार का spicey खाना
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याद आ रहा है वो जमाना
वो वालिया की चाय
वो मौसम सुहाना
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वो दखलंदाजी ब्लॉग पे शायरी करना
ऑरकुट व् फसबूक पे बाते बनाना
वो होन्ग कोंग की फ्रेंड हूँ चुंग सुई से
रात रात भर स्काइप पे चैटिंग करना
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याद आ रहा है वो जमाना
वो वालिया की चाय
वो मौसम सुहाना
.....................................................................................
वो ब्रांडेड कपड़ो का शौक
वो फास्ट ट्रैक का चस्मा लगाना
वो दुबई का परफुए
वो बालो का spicey लुक
वो कॉस्टली रिस्ट वाच मगाना
......................................................................................
याद आ रहा है वो जमाना
वो वालिया की चाय
वो मौसम सुहाना
.................................................................................................
वो मम्मी से कार की सिफारिश लगवाना
उसपे पापा का कार खरीदना
फिर असीम,अलोक,अभी,भाई के संग
लॉन्ग drive पे जाना
वो पापा से झूठ बोल के पॉकेट मनी बढवाना 
उससे गर्लफ्रेंड को ग्रीटिंग व्  गिफ्ट देना
फिर उस से रोमांटिक बाते करना
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याद आ रहा है वो जमाना
वो वालिया की चाय
वो मौसम सुहाना
....................................................................................
वो कैंटीन की कोल्ड कोफ्फी
वो सिगरेट का धुआ उड़ाना
कॉलेज के बहार लड़की पटाना
फैर्वेल पे आखो का रोना
धीमे धीमे सबसे बिछडना
..............................................................................
याद आ रहा है वो जमाना
वो वालिया की चाय
वो मौसम सुहाना
...................................................................................................
. ............................................................
मनीष शुक्ल

Wednesday, January 19, 2011

बारिश ने लिखी कविता


बारिश ने लिखी कविता  
किसी खिड़की के शीशे पर 
मगर अल्फाज़ पढ़ने का 
यहाँ पर वक़्त किसके पास है 

मौसम ने सजाया है 
बड़ी मेहनत से अम्बर को 
मगर छत पर टहलने का 
यहाँ पर वक़्त किसके पास है 

बाँहों में थाम लो भले
ये बात और है
मगर दिल में उतरने का 
यहाँ पर वक़्त किसके पास है

समझ सकते हैं हम
दुनिया के सारे कायदे कानून
मगर खुद को समझने का
यहाँ पर वक़्त किसके पास है.

Tuesday, January 18, 2011

हम रहे या ना रहे.....


हम तेरे साथ चलेंगे ,
तू चले या न चले ,
तेरा हर दर्द सहेंगे ,
तू कहे न कहे ,
तेरी परछाई बन के रहेंगे ,
तू माने या ना माने ,
हम चाहते है की ,
आप सदा खुश रहे दोस्त
हम रहे या ना रहे !


...................संजय भास्कर

Saturday, January 15, 2011

आज मैखाने की तरफ होके आते है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

आज मैखाने की तरफ होके आते है
एक पैमाना और एक जाम लगाते है

गम और ख़ुशी का एक माजरा बनाते है
आज मैखाने में खूब झूम के गाते है

चाहत को हकीकत से रु बरु करते है
आज मैखाने को दिल से सजाते है

खूब पीते है और खूब पिलाते है
आज मैखाने से लडखडा के जाते है

परवाह न खुद की न रह्गुजारी की
आज मैखाने में खुद ही बिक जाते है

........मनीष शुक्ल

Friday, January 14, 2011

दोस्ती हम निभाएंगे........

 लब्ज आप दो गीत हम बनायेंगे ,
मंजिल आप पाओ रास्ता हम बनायेंगे,
खुश आप रहो खुशीयां हम दिलायेंगे 
आप बस दोस्त बने रहो मनीष भाई 
दोस्ती हम निभाएंगे............!

उगते हुए सूरज को तेरी आस भी नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,,,

तू भी नहीं अब तेरा एहसास भी नहीं
उगते हुए सूरज को तेरी आस भी नहीं

दोस्ती कि कितनी झूठी दुहाई दोगे' के
अब दोस्ती के तू आस पास भी नहीं

कितनो को दोस्त कहके तू ने यहाँ लूटा 'कि
अब रहा किसी का तुझ पर विश्वास भी नहीं

कब तक गिनाते रहोगे वो एक एहसान अपना'कि
'मनी'इनको होगा कभी इसका एहसास भी नहीं

तू भी नहीं अब तेरा एहसास भी नहीं

गते हुए सूरज को तेरी आस भी नहीं
'''''''''''''''''''''''मनीष शुक्ल

Wednesday, January 12, 2011

.....बहाने तो मिल ही जायेगे


कशिश होनी चाहिए किसी को याद करने की ,
लम्हे तो अपने आप मिल जायेगे
वक्त होना चाहिए किसी को मिलने का ,
बहाने तो अपने आप मिल ही जायेगे 

 

Tuesday, January 11, 2011

फिर भी एक उम्मीद ....

जीवन तपती रेत ,
है चलना इस पर ,लेकिन 
इतना बस बच जाये 
कि लिख सकू एक म्रदुल कविता 
बहुत है मै समझूंगी;


सपनो कि झंझरी को भेदते
तीर कई आयेंगे
और यथार्थ कि कडवी घुट्टी 
पीनी ही होगी
होना है तो हो ये सबकुछ
लेकिन फिर भी रहे सशेस तनिक सहजता
बहुत है मै समझूंगी;


पत्थर होंगे,
काटे होंगे
जगह-जगह पर 
ही रिश्तो को
रिश्तो ने बाटे  होंगे
देखना होगा सबकुछ ये
लेकिन फिर भी 
कही जो देखू
मरण प्रेम का
कसक बड़ी हो
रहे नसों में रक्त उबलता
बहुत है मै समझूंगी;


भले मूल्य है नहीं 
आज मूल्यों का
लेकिन केवल यही जमी है
जिस पर फलती 
और फूलती जाती जीवन बेल
भले समझ न पाए कोई..
फिर भी एक उम्मीद कि धरती स्वर्ग बनेगी
इस उटोपिया कि खातिर 
गर रह जाये कुछ ह्रदय कलपता
बहुत है मै समझूंगी.

Monday, January 10, 2011

तू ठहर के देख जरा दो पल,,,,,,,,



जहा तू है तेरी वफ़ा है तेरी जवानी भी है
उन गलियों में ज़िन्दा मेरी कहानी भी है

तू ठहर के देख जरा दो पल वहा
ठहरी हुई अपनी निशानी भी है

तू किस गम में है ये बतलादे मुझे
देख तेरे पीछे मेरी जिंदगानी भी है

ये तेरी वफ़ा है जो ज़िन्दा हू मै
देख तेरी ऐसी मेहेरवानी भी है

'मनी'आज हालातो में बहुत उलझा हू
क्यों संग अपने ऐसी कहानी भी है
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मनीष शुक्ल