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Wednesday, March 30, 2011

कैसे बयां करूँ ?




मैं अपनी भावनाओ को 
शब्दों में कैसे बयां करूँ ?
शायद कहीं ऐसा ना हो ,
की कोई मुझे सुने ही ना ,
और कोई समझे ही ना 
वो बात जो सब समझे 
ये मैं कैसे पता करूँ ?
मैं अपनी भावनाओ को 
शब्दों में कैसे बयां करूँ ?

दीप्तमान हैं कुछ शब्द
लफ्जो पर हर सहर
प्रतिबिम्ब बन उन
लफ्जो को जो समझ सकें
उनका तहे दिल से मैं
कैसे शुक्रिया अदा करूँ ?
पर जो समझे ही नहीं
उनका कैसे पता करूँ ?
मैं अपनी भावनाओ को
शब्दों में कैसे बयां करूँ ?

- दीप्ति शर्मा 
                                                     
                                                            

Tuesday, March 29, 2011

जिन्दगी


उलझनों में जीती हुए मैं,
जिन्दगी को तलाश रही हूँ|
जगती हुई उन तमाम
अडचनों के साथ मैं खुश
रह जिन्दगी निखार रही हूँ |

बेवजह की उस उदासी का
जिक्र चला यादो की चादर से
खुद को पहचान रही हूँ|

गम भुला के दिल की उन
उम्मीदों को दिल मे बसा
तेरी यादों को ठुकरा रही हूँ |

जीने की चाह मे आह को भूला
चेहरे के तासुर  में गम छिपा
जिन्दगी को तलाश रही हूँ |

- दीप्ति शर्मा 

Monday, March 28, 2011

नमस्कार ! इस कविता में बनिए से मेरा तात्पर्य केवल एक ऐसे व्यापारी से है जिसके लिए केवल  उसका मुनाफा ही मायने रखता है और उसके व्यापर में भावनाओं का महत्व नाम मात्र ही  होता है

काश के ये दिल एक बनिया होता
काश के ये दिल एक बनिया होता,
हर सौदा इसका फायेदेमन्द होता |
सस्ती बिकती है हर शे इस बाज़ार में,
यही छपता इस दुकान के इश्तेहार में |
हर किसी को दुख बेचने का मिलता न्योता,
काश के ये दिल एक बनिया होता |

सब रिश्ते तराज़ू में तौले जाते,
बनते हर जज़्बात के बही खाते |
लगते जब मोल इश्क़ के जुनून के,
मिलते सिर्फ़ कुछ सिक्के ही खून के |
ना कोई आँख से पानी के आँसू रोता,
काश के ये दिल एक बनिया होता |

दाम होते संग बीते सब दिन और रातों के,
हँसी,आँसू,बिन मतलब के झगड़े,सब बातों के |
चंद मुश्किलों के सामने पड़ जाते हल्के,
कुछ तस्वीरें,बहुत से खत, ये सब मिलके |
एक पलड़े में रख के बेचा जाता सब यादों को,
साथ में दिया जाता मुफ़्त उन अधूरे वादों को |
इन सब को बेच के मैं आराम से सोता,
काश के ये दिल एक बनिया होता |

ना दबा रहता दिल सपनों और ख्वाहिशों के बोझ में,
बेच देता गम पुराने और निकल पड़ता नये की खोज में |
ना तलाशता हमेशा संग रहने वाले वफ़ादारों को,
सजाता रोज़ दुकान और बुलाता रोज़ नये खरीदारों को |
धोखे में ना रहता खुद औरों को ठगा होता,
काश के ये दिल एक बनिया होता |

                                                                              गौरव मकोल

तुम्हारी इजाजत



                   

मस्त अदाओ से सराबोर 
तुम्हारी जुल्फ चेहरे से हटाऊँ
क्या तुम्हारी ये इजाजत है 
ये सुहाने मौसम की नजाकत है |

जाहिल जमाना करे इंकार
पर पायलो की झंकार की
मोहब्बते दिल में इबादत है
ये सुहाने मौसम की नजाकत है |

इख़्तियार तेरा जो दिल में है
सोच उसे में लुत्फ़ उठाऊँ
क्या तुम्हारी ये इजाजत है
ये सुहाने मौसम की नजाकत है |

चुनरी में छुपे उस चाँद के
यहाँ आने की कुछ आहट है
सोच तुम्हे चारो दिशाओ में
मैं तुम्हारे ही गीत गाऊं
क्या तुम्हारी ये इजाजत है
ये सुहाने मौसम की नजाकत है |


- दीप्ति  शर्मा

(आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर ज़बान पर
सबको मालूम है और सबको खबर हो गई ) \- २

(हमने तो प्यार में ऐसा काम कर लिया
प्यार की राह में अपना नाम कर लिया ) \ - २
प्यार की राह में अपना नाम कर लिया
आजकल ...

(दो बदन एक दिन एक जान हो गए
मंज़िलें एक हुईं हमसफ़र बन गए ) \- २
मंज़िलें एक हुईं हमसफ़र बन गए 
आजकल ...

(क्यों भला हम डरें दिल के मालिक हैं हम
हर जनम में तुझे अपना माना सनम ) \- २
हर जनम में तुझे अपना माना सनम
आजकल ...
बात तो सही लगती है.... पर कब की है याद नही आ रहा है .

Wednesday, March 23, 2011

वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ए आशमा हम अभी से क्या बताये क्या हमारे दिल में है

सर फ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है 

देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है 
करता नहीं क्यों  दूसरा कुछ बात चीत 
देखता हू मै जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है 
ए शहीदे मुल्क मिल्लत मै तेरे ऊपर निशा 
अब तेरी हिम्मत का चर्चा गैर की महफ़िल में है 
वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ए आशमा 
हम अभी से क्या बताये क्या हमारे दिल में है
खीच कर लायी है सबको क़त्ल होने की उम्मीद 
आशिको का आज जमघट दुजये कातिल में है 
सर फरोशी की तम्मना अब हमारे दिल में है 
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है बता 
,,,,,,,,,,,,,राम प्रसाद बिस्मिल ,भगत सिंह,राज गुरु 

नवीन निश्चल ने बनाई दिलों में जगह



निश्चल को गरीबों का राजेश खन्ना भी कहा जाता था.
छोटा पर्दा ही नहीं वरन बड़ा भी। दोनों ही स्क्रीन्स पर अपनी अदाकारी का लोहा मनमाने वाले नवीन निश्चल के निधन से फिल्म और टीवी इंडस्ट्री को भारी धक्का पहुंचा है। लेकिन उनके फैन्स को सबसे ज्यादा धक्का लगा है। नवीन निश्चल अपने अभिनय के प्रति बहुत संजीदा रहे। उन्होंने पुराने जमाने की भी शानदार फिल्में कीं। जैसे कि सावन-भादों, संसार, विक्टोरिया नंबर 203, धुंध, परवाना आदि-आदि। नए जमाने की फिल्मों में भी उन्होंने शानदार अभिनय दिखाया। इनमें बुड्ढा मिल गया, खोसला का घोसला, ब्रेक के बाद, आलू चाट आदि फिल्में शामिल हैं।
18 मार्च 1946 को मुम्बई में जन्मे इन अभिनेता ने 2011 में अलविदा कह दिया। उन्होंने टेलीविजन पर भी अपनी छाप छोड़ी। उनका ‘देख भाई देख’ कार्यक्रम शायद सभी के जहन में होगा। उस समय का वह सबसे हिट कॉमेडी नाटक था। पंजाबी फिल्म ‘आसरा प्यार दा’ और जसपाल भट्टी के साथ ‘माहौल ठीक है’ में उन्होंने महत्वपूर्ण किरदार निभाए। कॉमेडी हो या सीरियस रोल, वे सबमें फिट थे। ‘फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ से गोल्ड मेडल लेने वाले इस पहले शख्स ने इंडस्ट्री को बहुत कुछ दिया। लेकिन 19 मार्च 2011 को ‘हार्ट अटैक’ के चलते उनकी मृत्यु हो गई। 
उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा।

Sunday, March 20, 2011

राह का रोड़ा,


राह का रोड़ा,
टकराता है कई क़दमों से,
और  बढ़ जाता है आगे,
उन अनगिनत ठोकरों से.
मीलों चला जाता है सिर्फ ठोकरें खाकर
और फिर आ जाता है
किसी पथिक के नीचे,

या कर देता है जख्मी
राह के किसी राही को.

कई वाहनों को एक पल में तबाह कर देता है
और ले लेता है बदला उन्लाखों ठोकरों का


मगर जब वही रोड़ा
दिखता है किसी शिल्पी को
तो ले आता है वो उसे अपने साथ
और दे देता है उस रोड़े को,
एक ऐसा रूप, जो साकार करता है सपने
लाखों मनुष्यों के
और ख़त्म कर देता है उस सिलसिले को
जो ना जाने कब से चला आ रहा था
भगवान् सा यह रोड़ा बिन वजह ही सबको सता रहा था

अबकी होली में...!


रंगों से कोई राग बनाया जाये अबकी होली में
उम्मीदों का फाग सुनाया जाये अबकी होली में

रंग उड़ गए जिन दीवारों के जीवन की धूपों में
आओ फिर से उन्हें सजाया जाये अबकी होली में

उतरे न साबुन से ना हल्का हो गम की बारिश में
ऐसा कोई रंग लगाया जाये अबकी होली में

  छूट गयीं जो गलियां पीछे छूट गए जो चौराहे
आओ फिर से घूमके आया जाये अबकी होली में

जो रूठे हैं किस्मत से या फिर हमसे गुस्सा हैं
आओ चलके उन्हें मनाया जाये अबकी होली में

घुल जाएँ सारे आंसू चमकें चेहरों पर मुस्कानें
ऐसा कोई गीत सुनाया जाये अबकी होली में

जो दुबक गए हैं बिल में वो सपने फिर बाहर आ जाएँ
ऐसा कोई बीन बजाया जाये अबकी होली में......

होली की हार्दिक शुभकामनायें.

होली की बहुत बहुत शुभकामनायें ......!!!

 
आप सभी को कविताबाज़ी ब्लॉग की ओर से ..........रंगों के पर्व होली की बहुत बहुत शुभकामनायें ..
रंगों का ये उत्सव आप के जीवन में अपार खुशियों के रंग भर दे..

Thursday, March 17, 2011

आसमान के सितारों को मैंने रोते देखा .........!!!!!


आसमान के सितारों को मैंने रोते देखा ,
उदासी का गम ढ़ोते देखा
देखा सब को तड़पते हुए,
सारी रात मैंने पूरे आसमा को तड़पते देखा,
रात की रौशनी को देखा ,
तारो की चमक को देखा
सुबह होते ही इनकी रौशनी को खोते देखा |
थके से आसमा को देखा ,
अन्दर से रोते
अन्दर से चमक दमक खोते देखा
कोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर
बस सबको रात भर
हमने बेफिक्र सोते हुए देखा |

-- संजय कुमार भास्कर

Monday, March 7, 2011

वो अब दर दर भटक रहे है ,,,,

वो अब दर दर  भटक  रहे है 
मोहब्बत को ऐसे तरस रहे है 

कभी  लुटा  था  खूब  वफाई  को 
फिर क्यों वो बेवफाई से डर रहे है 

बेवक्त   बेवजह खाम खा सताया 
और अब खुद पर  बरस  रहे  है 

जब थे साथ तब कभी माना नहीं 
 और अब परछाई को तरस रहे है 

"मनी" अब न हो पाए वो कभी किसी के 
शायद इसी गम से घुट घुट के मर रहे है 
                      ...........मनीष शुक्ल