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Saturday, January 28, 2012

ग़ज़ल


तू मेरी जरूरत भी रहा, मेरी आदत भी।
तू ही खुदा था  मेरा, मेरी  इबादत भी।

दरिया से  कतरा मांग  कर क्या करता,
यही वक्त का तकाजा है, मेरी चाहत भी।

क्यूं शर्मिंदा रहूं करके इश्क-ए-गुनाह,
सज़ा भी यही है, और मेरी राहत भी।

यादों के टुकड़े  जोड़ने की कोशिश में,
 हुई कभी जीत, यही मेरी मात भी।


तुम्हारी मुहब्बत सूरज से क्या कह गयी,
उजला हुआ  दिन, रौशन मेरी रात भी।


  • रवि कुमार बाबुल


Friday, January 27, 2012

बसंत ऋतू की शुभकामनाएं...


आइये कुछ झलकियां तो देख लीजिए मित्र मेरे ब्लाग में बसंत पंचमी की...
"आप सभी को हार्दिक दिल से शुभकामनाएं बसंत पंचमी की"

साभार: गूगल वेब को चित्रों के लिए.

Sunday, January 22, 2012

अपना दर्द....


आप सभी मित्रों के लिए पेश है नए साल(2012) का मेरा पहला पोस्ट
जिसमें तो दो अलग-अलग लाइने हैं पर दोनों कविता का अर्थ और दर्द एक ही है,


(१)
मुझे उदास देख कर उसने कहा ;
मेरे होते हुए तुम्हें कोई 
दुःख नहीं दे सकता,


"फिर ऐसा ही हुआ"
ज़िन्दगी में जितने भी दुःख मिले, 
सब उसी ने दिए.....
(२)
वो अक्सर हमसे एक वादा करते हैं कि;
"आपको तो हम अपना बना कर 
ही छोड़ेंगे"
और फिर एक दिन उन्होंने अपना
वादा पूरा कर दिया,


"हमें अपना बनाकर छोड़ दिया..."


नीलकमल वैष्णव"अनिश"

Saturday, January 21, 2012

नहीं बुरा नहीं लगा मुझे बल्कि मैंने तुममे आज एक पहचान देखी है मेरे दोस्त ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

खट खट इक दम से चौक गया था मै और चौकता भी क्यों न भला 
 क्युकी मैंने उसे आज अपने दिल की बात जो कह दी थी 
और पूरी तरह से डर गया था पर ये मेरे दोस्त भी न मरवा दिया न मुझे 
और ये मेरा पागल दिल एक बार दिमाग की सुन लेता तो 
शायद इतना ही सोचा था और मुझसे दरवाजा खुल गया  
मेरा रोम रोम काँप गया आवाज़ इक दम से दबी रह गयी 
वो शांत चेहरा देखकर ........बुरा मान गयी क्या 
ये बात मैंने अपने मन में ही सोची ही थी 
                                नहीं बुरा नहीं लगा मुझे बल्कि मैंने तुममे आज एक पहचान देखी है 
मेरे दोस्त ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
                                                 पर तुमने बहुत देर कर दी शायद इस प्रश्न का उत्तर मै किसी को पूरी हाँ में दे चुकी हू 
मै इकदम आवाक,शांत,असहाय सब कुछ लूट लिया हों किसी ने जैसे 
                                                                                        क्युकी ये उत्तर उसका एक  मानव बम जैसा ही था 
दिल तो बस किसी बिल में चला गया हों जैसे और दिमाग वार वार पर किये जा रहा था 
                                   की काश मैंने ..................................................................................
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मनीष शुक्ल  

चाहत


खत लिखने का सोचा था कल रात उसको ....
कम्बख्त छुरी नही मिली
सोचा लहु से ना सही, आसूओ से लिख दे
पैगाम ए प्यार,
दिल तो खूब रोया
कम्बख्त आख दगा दे गई.
(चिराग )

Thursday, January 19, 2012

.....................आज मैं क्या लिखूं?


आज मैं क्या लिखूं?
हाँ बहुत दिन होगए है,
ख्यालों के बादल भी कम हो गए है,
साफ़ साफ़ सा है विचारों का आसमां
इसी सोच में हूँ की आज मैं क्या लिखूं?

-- संजय भास्कर 

Wednesday, January 11, 2012

मैं रुक गयी होती



जब मैं चली थी तो
तुने रोका नहीं वरना
मैं रुक गयी होती |
यादें साथ थी और
कुछ बातें याद थी
ख़ुशबू जो आयी होती
तेरे पास आने की तो
मैं रुक गयी होती |
सर पर इल्ज़ाम और
अश्कों का ज़खीरा ले
मुझे जाना तो पड़ा
बेकसूर समझा होता तो
मैं रुक गयी होती |
तेरे गुरुर से पनपी
इल्तज़ा ले गयी
मुझे तुझसे इतना दूर
उस वक़्त जो तुने
नज़रें मिलायी होती तो
मैं रुक गयी होती |
खफा थी मैं तुझसे
या तू ज़ुदा था मुझसे
उन खार भरी राह में
तुने रोका होता तो शायद
मैं रुक गयी होती |
बस हाथ बढाया होता
मुझे अपना बनाया होता
दो घड़ी रुक बातें
जो की होती तुमने तो
ठहर जाते ये कदम और
मैं रुक गयी होती |
_------ "दीप्ति शर्मा "





Monday, January 9, 2012

आया है आज मुद्दतों के बाद रोज़ तेरे विसाल का


आया है  आज मुद्दतों के बाद रोज़ तेरे विसाल का
दीद देखेंगे आज फिर  जलवा तेरे जमाल का
(विसाल= मुलाक़ात) (जमाल= रूप)

तेरे चेहरे पे उलझी से लटों में मैं भी उलझता गया
न-वाकिफ-ए-अंजाम था , नादान मैं भी कमाल का

रु-ब-रु मेरे हो कर जो तूने तकल्लुफ ब़र-तरफ़ किया
तेरी नीम-बाज़ आँखों में था नुक्ता किसी हसीन चाल का 
(तकल्लुफ ब़र तरफ़ करना= तकल्लुफ ख़त्म करना) (नुक्ता= अंदेशा)

था ये हुस्न-ए-यार या की तेरी आशनाई "रूहान"
बन गया है तू सबब शहर   में मचे इस बवाल का

गौरव मकोल "रूहान"

ये आँखें



कभी अनमोल मोतियों
को गिरा देती हैं |
तो कभी बहुत कुछ 
अपने में छुपा लेती हैं ,
ये आँखें |
   -- " दीप्ति शर्मा "

मन्नत


अक्सर वो मन्नतें,
हो जाती हैं पूरी,
जो टूटते हुये,
तारों को देख कर मांगी जाये।

आज मैंने भी,
मांगी है मन्नत,
अपने टूटे हुये दिल से,
तेरा साथ मिल जाये,
सदा-सदा के लिये।

सोचता हूं,
तारों का टूटना सच है,
और दिल का टूटना भी।

फिर कोई तो बतलाए,
दिल से कितने बड़े होते हैं तारे?
जो अनसुनी रह गई दिल की आवाज,
और पूरी नहीं हुयी मेरी मन्नत?


  • रवि कुमार बाबुल

Thursday, January 5, 2012

कुछ तो है तुम में जो वाकई सबसे हटके है

कुछ तो है तुम में जो वाकई सबसे हटके है 


पर इसका पता लगा पाना मेरे लिए मुश्किल है  

शायद मै बहुत पसंद करता हू इसलिए 

या फिर कोई और बात है जिसे मै कह नहीं सकता 

पर इतना तो तय है तुम बहुत ख़ास बन गयी हों मेरे लिए 

जबसे मैंने तुम्हे समझा है जाना है 

यकीन मानो मुझे जिन्दगी जीने का बड़ा मकसद मिल गया है 

तुम्हारी हां


मेरी जिद् के बाद ही सही,
तुमने स्वीकार किया था मुझे,
कहकर हां।

तुम्हारे नर्म होठों ने,
जब कहा था हां,
मैनें किया था महसूस,
हर लब्ज़ अपने गाल पर।

पर अब,
जब तुम नहीं हो,
तन-मन से करीब मेरे,
अक्सर कुछ बूंदें,
जिद् कर बैठती हैं,
तुम्हारी हां को,
मेरे गालों से धो देने की।

मेरे बहाने ही सही,
अपने हां को,
डूबने / मिटने से बचा लो,
बस तुम आ जाओ।


  • रवि कुमार बाबुल

Wednesday, January 4, 2012

अब क्या करना है |




इत्मिनान से जी लूँ
लिख लूँ कुछ नगमें
जो ज़ज्बात से भरें हों
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |

गढ़ लूँ कुछ नये आयाम
सतत बढूँ दीर्घ गूंज से
ले मैं रुख पर नकाब
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |

स्मरण कर उन्मुक्त स्वर
स्वछन्द गगन में टहलूं
सहजभाव से स्मृतियों में
कुछ ख्यालों को छुला लूँ
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |

महसूस कर लूँ एहसास
तेरे यहाँ आने का
बरस जाये बरखा
सावन भर आये और
तुझसे मिलन हो जाएँ
फिर सोचूँगी की मुझे
अब क्या करना है |
--- दीप्ति शर्मा


Monday, January 2, 2012

"ज़िन्दगी की राहों पर......"

वो निश्चल भावना तुम्हारी
          जीत मेरा मन गयी
जला के मन मंदिर में जयोति
          वो प्रीत मेरी बन गयी

मैं प्यार का सागर बना
          तू लहर मेरी बन गयी
मैं गीत बना धरा पर
          तू संगीत मेरी बन गयी

ज़िन्दगी की राहों में हर
          खवाब टूटने लगे
पर तुझे देख खवाब सजाना
          रीत मेरी बन गयी

तुझ संग जीने-मरने की कसमें
          मैं रोज खाया करता था
पता नहीं चला मुझे कब
          तू अतीत मेरी बन गयी !!!