वो पहली किरण और तेरा चेहरा ,
बादलों में भी उभर आई तेरी ही तश्वीर ,
हर सांस तेरे बोलों पर थिरकने लगी ,
तेरे याद में वादियाँ महकने लगी ,
बादलों में भी उभर आई तेरी ही तश्वीर ,
हर सांस तेरे बोलों पर थिरकने लगी ,
तेरे याद में वादियाँ महकने लगी ,
सूरज की लालिमा ने तेरे माथे की बिंदिया की यादें दिलाईं ,चहकने लगे पंची जैसे तेरी चुरियाँ मुझे जगाने आयीं ,
शाख के पत्ते झूमने लगे ,
होने लगा तेरे पायलिया का गुमान ,
मिटटी की सोंधी खुशबू से बरबस आया
तेरे हथेलियों की हिना का ध्यान ,
और तभी एक पुरवैय्या आई
और एक सुंदर ख्वाब टूट गया
और सामने ज़िन्दगी रू-ब-रू करने आ गयी थी मुझसे ...
बहुत ही खूबसूरत रचना..आभार नीलांश जी..
ReplyDeletedhanyvaad ,aapke sneh ka aabhaari hoon sanjay ji
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