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Monday, April 9, 2012

हर लफ़्ज़ का आईना

अपने हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा.
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा..

तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा भी नहीं.
मैं गिरा तो मशाल बनकर खड़ा हो जाऊँगा..

1 comment:

  1. आपकी सभी प्रस्तुतियां संग्रहणीय हैं। .बेहतरीन पोस्ट .
    मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए के लिए
    अपना कीमती समय निकाल कर मेरी नई पोस्ट मेरा नसीब जरुर आये
    दिनेश पारीक
    http://dineshpareek19.blogspot.in/2012/04/blog-post.html

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