आज बैठी हूँ और
सोच रहीं हूँ तुझे
तुझसे मिलने को मन
करता है और कहता है
आजा मेरी बहन घर
सुना है तेरे बगैर |
जब खाते थे एक
ही थाली में खाना
लड़ना झगड़ना और
रूठ के मान जाना
आजा मेरी बहन घर
सुना है तेरे बगैर |
एक्टिवा पर बाज़ार
निकल घूमना पूरे दिन
पर अकेले मन नही
करता अब तो जाने का
आजा मेरी बहन घर
सुना है तेरे बगैर |
एक साथ स्कूल जाना
खेलना खाना और पढना
हँसना खूब मस्त रहना
अब तू हम सबके पास
आजा मेरी बहन घर
सुना है तेरे बगैर |
माँ भी पूछती है
अब कब आयेगी तू
तेरी याद करती है और
हम तारें हैं उनकी आँखों के
कैसे रह पायेगी वो
यूँ दूर हमसे तो अब
आजा मेरी बहन घर
सुना है तेरे बगैर |
-दीप्ति शर्मा
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