कविता
हे प्रभु ! इस दास की इतनी विनय सुन लीजिए
लात,जूता,मार थप्पड़ पास बस कर दीजिए
मैं डरता नहीं प्रलय या मौत के तूफ़ान से
बस मेरी रूह कांपती है इम्तिहान से
सवेरा हुआ इम्तिहान में प्रश्न-पत्र था भूगोल का
और उसमें एक प्रश्न था, गोल है कैसे धरा ?
मैंने भी एक पल में लिख दिया उत्तर खरा
गोल है चूड़ी, कचौरी और पापड़ भी गोल है
गोल है रसगुल्ला,जलेबी और लड्डू भी गोल है
इसलिए शिक्षक महोदय यह धरा भी गोल है,
देख उत्तर खोल कर शिक्षक हँसे जी खोलकर
गोल है दवात तेरी लेखनी भी गोल है
इसलिए बेटा तुम्हारे नम्बर भी गोल है
रोज मच्छर रात को कहता यही है कान में
होश करके बैठना इस बार इम्तिहान में.....!
:-- नीलकमल वैष्णव "अनिश" --:
उपाध्यक्ष
उपाध्यक्ष
छत्तीसगढ़ लेखक संघ
(लेखक संघ कोसीर)
www.neelkamalkosir.blogspot.com
सुंदर रचना...
ReplyDeleteएक गहरी छाप छोड़्ती है यह कविता मन पर!!
ReplyDeleteरोज मच्छर रात को कहता यही है कान में
ReplyDeleteहोश करके बैठना इस बार इम्तिहान में.....!
..waah! bahut badiya..
sach preeksha kaisi bhi ho ek anchaha dar to rahta hi man mein..