ये लोगो को अजब गलतफहमी हों गयी है,कहते है
मुझे तुम्हारे मन से नहीं धन से मोहब्बत हों गयी है
तुम तो समझदार हों सब जानती हों ,की
मुझे तुमसे सिर्फ तुमसे मोहब्बत हों गयी है
ये पत्थर दिल लोग कुछ समझते ही नहीं,की
एक मजनू को लैला से मोहब्बत हों गयी है
कितने भी पहरे बिठा ले ये जालिम पैसे वाले
ये नहीं जानते हीर को राझा से मोहब्बत हों गयी है
मनी,काश ये लोग समझ पाते मोहब्बत के रीती रिवाज
कैसे समाज के लोग है इनको नफरत से मोहब्बत हों गयी है
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मनीष शुक्ल
तुम तो समझदार हों सब जानती हों ,की
ReplyDeleteमुझे तुमसे सिर्फ तुमसे मोहब्बत हों गयी है....बहुत ही खुबसूरत और उम्दा ग़ज़ल....