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Monday, November 7, 2011

...और सपना भी नहीं

वह मेरा पूरा दिन है
और मै,
उसका एक लम्हा भी नही
अकेली हूँ लगता है
पर वह है मुझमे तो मै तन्हा भी नहीं;

गुनगुनाती रहती हूँ सुबह को
तो सूरज कहता है
कह दो न
पर वह है कि सुनना   चाहता है
और कहता है कि कहना भी नहीं;

उसकी मुस्कुराहटों की तितलियाँ
फिरती रहती हैं मेरे उपवन में
शिकवा है जिंदगी से -
क्यों ये,
हकीक़त भी नहीं है और सपना भी नहीं;

वह एक ही उजाला है
जो भर सकता है मेरे आँगन में
पर वह है कि कहता है
रहना तुम मेरे ह्रदय में और रहना भी नहीं.

                                           रश्मि.

5 comments:

  1. मनोभावों को बेहद खूबसूरती से पिरोया है आपने... हार्दिक बधाई
    बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट पढ़ कर अच्छा लगा...

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  2. गुनगुनाती रहती हूँ सुबह को

    तो सूरज कहता है
    कह दो न
    पर वह है कि सुनना चाहता है
    और कहता है कि कहना भी नहीं;
    काफी अच्छा लिखने लगी हो ,,,,रश्मि

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  3. बेहद ख़ूबसूरत....

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  4. वह मेरा पूरा दिन है
    और मै,
    उसका एक लम्हा भी नही
    अकेली हूँ लगता है
    पर वह है मुझमे तो मै तन्हा भी नहीं

    अच्छी लगी ये पंक्तियाँ

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