बिखरे हर अल्फ़ाज के हालातों
में फंसी खुद को मनाती रही
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |
आँखों में सपने सजाती रही
धडकनों को आस बंधाती रही
मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |
हाथ बढाया कभी तो छुड़ाया कभी
यूँ ही तेरे ख्यालों में आती जाती रही
याद कर हर लम्हा मुस्कुराती रही
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |
मैं खुद को न जाने क्यों सताती रही
हर कदम पे यूँ ही खिलखिलाती रही
खुद को कभी हंसती कभी रुलाती रही
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |
मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही |
- दीप्ति शर्मा
अच्छी रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
समय मिले तो मेरे एक नए ब्लाग "रोजनामचा" को देखें। कोशिश है कि रोज की एक बड़ी खबर जो कहीं अछूती रह जाती है, उससे आपको अवगत कराया जा सके।
http://dailyreportsonline.blogspot.com
बहुत ही खुबसूरत भावपूर्ण रचना.....
ReplyDeleteaap sabhi ka bahut bahut aabhar
ReplyDelete