आँखें खुली ...
अँधेरा सा लगा
कमरे से जब बहार आया
सूरज की लाल -लाल किरणे मद्धम -मद्धम
आसमान को निगल रहा था
पड़ोस में
संगीत की धुन कानो को झंझकृत कर रही थी
सुबह सूरज
मेरे नैनों को नई रह दिखा रही थी
मेरा नन्हा "यज्ञेय "
हंसते हुए .....
किलकारी ले रहा था
वह सुबह मेरी जीवन की
नई जंग बन गई
चेहेरे पर मुस्कान थी पर
जेम्मेदारी की इक .... नई आगाज बन गई ...
...........लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल "
वाह,क्या बात है...खुबसूरत रचना
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