अगर आप भी इस मंच पर कवितायेँ प्रस्तुत करना चाहते हैं तो इस पते पर संपर्क करें... edit.kavitabazi@gmail.com

Saturday, November 5, 2011

चान्द



जो मैं सूरज की मानिंद जलता रहूंगा,
वो चान्द है, बुझेगा नहीं तब तक।

  • रविकुमार बाबुल



http://babulgwalior.blogspot.com/

No comments:

Post a Comment