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Friday, November 4, 2011

वो




आंचती हुई काजल को
वो कैसे मुस्कुरा रही है |,

लुफ्त उठा जीवन का
मोहब्बत की झनकार में
अपनी धुन में मस्त उसकी
पायलियाँ गीत गा रही हैं |

केशो को सवारकर 
चुनरी ओढ़ वो घूँघट में
लज्जा से सरमा रही है |

साज सज्जा से हो तैयार
खुद को निहार आइने में
नजरे झुका और उठा रही है |

इंतज़ार में मेरे वो सजके
भग्न झरोखे में छिपकर
मेरा रास्ता ताक रही है |

- दीप्ति शर्मा 

1 comment:

  1. आंचती हुई काजल को
    वो कैसे मुस्कुरा रही है |,

    लुफ्त उठा जीवन का
    मोहब्बत की झनकार में
    अपनी धुन में मस्त उसकी
    पायलियाँ गीत गा रही हैं |बहुत ही प्यारी रचना.....

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