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Thursday, November 24, 2011

जीवन धारा




अविरल चलती करती छल छल,
रखती सुख दुःख जीवन धारा।
स्वयं अकिंचन, भरती कण कण,
गति निर्मोही ये जीवन धारा॥

3 comments:

  1. बेहतरीन शब्द रचना.....

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  2. बहुत सुंदर रचना..बधाई....
    मेरे नई पोस्ट में आपका स्वागत है

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  3. Beautiful blog, I read quite some now, and I love your originality,

    From everything is canvas

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