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Tuesday, November 29, 2011

....कहीं सिर फूट न जाए, तेरी चौखट से टकरा कर !!

मैं क्या हूँ, कुछ भी नहीं हूँ
मगर तू है, बहुत कुछ है
फर्क गर है, दोनों में
जमीं और आसमां सा है
तू डरता है, बुलाने से
मैं आने में, सहमता हूँ
आने को, तो मैं चला आता
बिना बुलाये, महफ़िल में
सच ! नहीं डरता मैं आने से
तेरी, ऊंची हवेली में
चिंता है, तो बस इतनी
कहीं सिर फूट न जाए
तेरी चौखट से टकरा कर !!
...
सच ! नहीं डरता मैं आने से, तेरी ऊंची हवेली में
कहीं सिर फूट न जाए, तेरी चौखट से टकरा कर !



हमारे मित्र :-
श्याम 'उदय' की रचना

Monday, November 28, 2011

जन्मदिन


आज मेरी प्यारी बहिन का जन्मदिन है और मैं बहुत खुश हूँ ,, मेरी तरह से उसे ढेरो शुभकामनाये ,,, कृपया आप भी अपना बहुमूल्य आशीर्वाद उसे प्रदान करें |

आज जन्मदिवस पर तेरे ,
ओ मेरी प्यारी बहिन
दुलार करते हैं सभी
प्यार करते हैं सभी

हजार ख्वाहिशें जुडी हैं
माँ पापा की तुझसे
रौशन है ये आँगन तुझसे
कह दे तू ये आज मुझसे
न दूर हो हम कभी भी
अब एक दूजे से

जफ़र पा ओ मेरी बहिन
घर जल्दी आना तू अबकी
आँखों का तारा हैं तू सबकी

तेरा सपना सच हो जाये
हर ख्वाहिश पूरी हो जाये
जन्मदिन पर मिले तुझे
सबका इतना आशीष
की हर बाला आने से
पहले ही टल जाये

जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक हो प्रीती .

- दीप्ति शर्मा

मस्त बिंदास ,रहती हों वाकई गज़ब है पर औरो की तरह भाव न खाया करो तुम

धीरे से आराम से खिड़की से मुस्कुराया करो तुम 
नजर लग जाएगी यूही  टहलने न जाया करो तुम 

यू तो सबको अच्छे लगने लगे हों पर 'कोई नहीं 
खासकर ये लाल रंग पहन कर न आया करो तुम 

लाजवाब' अदाए है पास तुम्हारे सच है ये 
पर हस्ते हुए यू ज़ुल्फ़ न लहराया करो तुम  

      मस्त बिंदास ,रहती हों वाकई गज़ब है 
  पर  औरो की तरह भाव न खाया करो तुम 

सच है सभी कहते की बहुत  खूबसूरत लड़की हों तुम 
मनी' पर घंटा घंटा आईने को युही न निहारा करो तुम 
                                   ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मनीष शुक्ल 

एहसास - ए- दिल


१. हंसाने वाले  मुस्कराहट  दे  ,,
खुद भी मुस्कुराते  हैं .
तो क्या यूँ  सबको रुलाने वाले भी,,,

कभी किसी के लिए आंसूं  बहाते हैं 


२.मैं हूँ उन लहरों की तरह 
जो ऊँचाई छुआ करती हैं 
मिल जातीं हैं रेत से पर 
खुद के अस्तित्व को कायम रखती हैं |


दीप्ति शर्मा 

Saturday, November 26, 2011

कितना भी नकार ले, दुनिया के डर से, उसे मन ही मन मेरी याद आती होगी


ठंडी हवा जब उसे, छू कर जाती होगी,
शायद उसे मेरी याद, आती होगी,
कितना भी नकार ले, दुनिया के डर से,
यकीन है मन ही मन मुझे, चाहती होगी.........

फूट पड़ते है, झरने पत्थरो से यकायक,
अश्क छुपाने को बारिश में, नहाती होगी.......

क्या फर्क आलम-ए-तन्हाई बसर का
मिले थे जिन बागो में, वहा जाती होगी.......

तकिये के गिलाफ में, मेरे ख़त सबूत है,
मेरे खूँ की लिखावट उसे रुलाती होगी.............

कौन करेगा हिफाज़त, तेरी जुल्फों की दिलनशी,
बंद कमरों में बस आईने, जलाती होगी..........

हारकर, थककर, रोकर, सुबककर, बेचारी,
मुझसे दूर तन्हा यु हीं सो जाती होगी..

कितना भी नकार ले, दुनिया के डर से,
उसे मन ही मन मेरी याद आती होगी

ठंडी हवा जब उसे, छू कर जाती होगी,
शायद उसे मेरी याद, आती होगी
शायद उसे मेरी याद, आती होगी
प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
ब्लॉग का पता : http://prabhat-wwwprabhatkumarbhardwaj.blogspot.com/

कैसी होगी वो मुलाकात |



जाने दिन होगा या रात
कैसी होगी वो मुलाकात,
अंधियारे को भेदती 
मंद मंद चाँद की चांदनी 
और हल्की सी बरसात 
कुछ शरमीले से भाव 
कुछ तेरी कुछ मेरी बात 
अनजाने से वो हालत 
कैसी होगी वो मुलाकात |

आलम-ए-इश्क वजह 
बन तमन्नाओं से 
सराबोर निगाहों के साये 
में हुयी तमाम बात 
तकते हुए नूर को तेरे
ठहरी हुयी सी आवाज 
अनजाने से वो हालात
कैसी होगी वो मुलाकात | 

Thursday, November 24, 2011

जीवन धारा




अविरल चलती करती छल छल,
रखती सुख दुःख जीवन धारा।
स्वयं अकिंचन, भरती कण कण,
गति निर्मोही ये जीवन धारा॥

Tuesday, November 22, 2011

उन्हें कुछ भी हों ये कतई गवारा नहीं मुझे , वो सारे ज़ुल्म मुझ पर करे कोई बात नहीं

वो छोड़ कर जा रहे है हमे कोई बात नहीं 
 दिल को शीशे सा तोड़ रहे कोई बात नहीं 

वो क्या कर रहे है शायद जानते ही नहीं 
वो महक फूलो से छीन रहे कोई बात नहीं 

एक एक वादा जो उन्होंने किया था मेरे संग 
वो एक एक कर तोड़ रहे है उन्हें कोई बात नहीं 

उन्हें कुछ भी हों ये कतई गवारा नहीं मुझे 
वो सारे ज़ुल्म मुझ पर करे कोई बात नहीं 

मनी 'अजीब गहरइयो में डूबा हू कैसे समझाऊ 
वो न सोचे मेरे बारे में तो न सोचे कोई बात नहीं  
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मनीष शुक्ल 




दैवीय रूप



मदभरे नयन पूर्ण यौवन,
आकर्षित करते प्रत्येक मन।
सुरचित त्रुटिहीन सत्य सौंदर्य,

Monday, November 21, 2011

आज फिर आया नयन में एक आँसू




उनके बिना धूप का ये वक्त गुजरा बहुत धीरे,
बहुत कुछ बन कर मिट चुका है हर सबेरे,
यादों से दूर खुद को व्यस्त रखने की लगन में,
ये आँसू किसी को दिख न जाए चिंता है घेरे॥

वो भूली नहीं होंगी मुझे अबतलक ये सोच,
देख आज फिर आया नयन में एक आँसू॥
अश्रु और प्रेम का....
आज फिर आया नयन में एक आँसू(Complete)
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Saturday, November 19, 2011

तुम ऐसे न खुद को चुराया करो , कभी सामने आ भी जाया करो



तुम ऐसे न खुद को चुराया करो
कभी सामने आ भी जाया करो

मै देखने के लिए बैठा हु देखो
कभी तो नजरे मिलाया करो

मै जगता हु सारी राते यहाँ पर
कभी खाव्बो में भी आया करो

बहुत उदास हू आज कल
कभी हँसा भी जाया करो

अब तो लोग कहने लगे है दीवाना
कभी खुद भी हिम्मत दिखाया करो

अब इतना न यु सताया करो
कभी तो दिल से लगाया करो
................मनीष शुक्ल

Thursday, November 17, 2011

गुनगुनाती रही



मेरी खामोशियाँ  मुझे रुलाती रहीं
बिखरे हर अल्फ़ाज के हालातों 
में फंसी खुद को मनाती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |

आँखों में सपने सजाती रही 
धडकनों को आस बंधाती रही 
मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |

हाथ बढाया कभी तो छुड़ाया कभी 
यूँ ही तेरे ख्यालों में आती जाती रही 
याद कर हर लम्हा मुस्कुराती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |

मैं खुद को न जाने क्यों सताती रही 
हर कदम पे यूँ ही खिलखिलाती रही 
खुद को कभी हंसती कभी रुलाती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |
मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही |

- दीप्ति शर्मा 

Wednesday, November 16, 2011

ये पत्थर दिल लोग कुछ समझते ही नहीं,की एक मजनू को लैला से मोहब्बत हों गयी है

ये लोगो को अजब गलतफहमी हों गयी है,कहते है 
मुझे तुम्हारे मन से नहीं धन से मोहब्बत हों गयी है 

तुम तो समझदार हों सब जानती हों ,की 
मुझे तुमसे सिर्फ तुमसे मोहब्बत हों गयी है 

ये पत्थर दिल लोग कुछ समझते ही नहीं,की 
एक मजनू को लैला से मोहब्बत हों गयी है 

कितने भी पहरे बिठा ले ये जालिम पैसे वाले 
ये नहीं जानते हीर को राझा से मोहब्बत हों गयी है 

मनी,काश ये लोग समझ पाते मोहब्बत के रीती रिवाज 
कैसे समाज के लोग है इनको नफरत से मोहब्बत हों गयी है
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मनीष शुक्ल  

Monday, November 14, 2011

हमारे गोल मोल सर


आँखों में चश्मा , चेहरा है गोल
पढ़ाते रहते वो हमें  गोल मोल 
बोर्ड पर लिखते है इतना और 
हमेशा बोलते है ओर ओर |
कहते हैं वो इतना मधुर कि
बोलते उनके सो जाते सारे लोग 
फिर भी वो नही रुकते और 
पढ़ाते रहते वो हमे गोल मोल |
हाथों में  पेपर चौक थाम के 
कितना पढ़ाते हैं बार बार |
कद है छोटा तन तन है मोटा 
पढ़ने में है थोडा खोटा
नंबर देता छोटा मोटा |
टुकुर टुकुर यूँ देखे सबको 
क्यों देखे ये पता नहीं 
मन ना हो पढने का फिर भी 
लिखते है वो मोर मोर 
पढ़ाते रहते हमे गोल मोल |
-  दीप्ति शर्मा 

Thursday, November 10, 2011

परवाह न खुद की न रह्गुजारी की ,आज मैखाने में खुद ही बिक जाते है


आज मैखाने की तरफ होके आते है 
एक पैमाना और एक जाम बनाते है

गम और ख़ुशी का एक माजरा बनाते है
आज मैखाने में खूब झूम के गाते है

चाहत को हकीकत से रु बरु करते है
आज मैखाने को दिल से सजाते है

खूब पीते है और खूब पिलाते है
आज मैखाने से लडखडा के जाते है

परवाह न खुद की न रह्गुजारी की
आज मैखाने में खुद ही बिक जाते है

........मनीष शुक्ल

Monday, November 7, 2011

...और सपना भी नहीं

वह मेरा पूरा दिन है
और मै,
उसका एक लम्हा भी नही
अकेली हूँ लगता है
पर वह है मुझमे तो मै तन्हा भी नहीं;

गुनगुनाती रहती हूँ सुबह को
तो सूरज कहता है
कह दो न
पर वह है कि सुनना   चाहता है
और कहता है कि कहना भी नहीं;

उसकी मुस्कुराहटों की तितलियाँ
फिरती रहती हैं मेरे उपवन में
शिकवा है जिंदगी से -
क्यों ये,
हकीक़त भी नहीं है और सपना भी नहीं;

वह एक ही उजाला है
जो भर सकता है मेरे आँगन में
पर वह है कि कहता है
रहना तुम मेरे ह्रदय में और रहना भी नहीं.

                                           रश्मि.

सुरमई -सुबह




आँखें खुली ...
अँधेरा सा लगा 
कमरे से जब बहार आया 
सूरज की लाल -लाल किरणे मद्धम -मद्धम 
आसमान को निगल रहा था 
पड़ोस में 
संगीत की धुन कानो को झंझकृत कर रही थी 
सुबह सूरज 
मेरे नैनों को नई रह दिखा रही थी 
मेरा नन्हा "यज्ञेय " 
हंसते हुए ..... 
किलकारी ले रहा था 
वह सुबह मेरी जीवन की 
नई जंग बन गई 
चेहेरे पर मुस्कान थी पर 
जेम्मेदारी की इक .... नई आगाज बन गई ...
...........लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल "

Sunday, November 6, 2011

न जाने किस सितारे की नजर लग गयी उनको 'कि ,आजकल शाम होते ही वो छत पर आते भी नहीं है

 कुछ बताते भी नहीं है गुनगुनाते भी नहीं है
 क्या बात है आजकल पास आते भी नहीं है  

 जिनका उदासी से  कोई भी रिश्ता नहीं था 
क्या बात है वो आजकल मुस्कुराते भी नहीं है 

जो सबको समझाया करते रहते थे हर दम 'मनी 
क्या बात है वो आजकल खुद को समझाते भी नहीं है 

जो बहुत कुछ बता,समझा देते थे  इशारों में 
क्या बात है वो आजकल नजरे मिलाते भी नहीं है 

न जाने किस सितारे की नजर लग गयी उनको 'कि
आजकल शाम होते ही वो छत पर आते भी नहीं है 
                   ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मनीष शुक्ल 'मनी 









Saturday, November 5, 2011

दर्द



शिकायत क्या करुं तुमसे,

कुछ कमी मुझमें ही थी?
तुमने क·fe चाहा ही नहीं,
मैं फिर 
 ·fe
 तुम्हें चाहता रहा।

दूरियों ने की है चुगली,
मेरी नजदीकियां तुम्हें दर्द देती थीं?


  • रविकुमार बाबुल

चान्द



जो मैं सूरज की मानिंद जलता रहूंगा,
वो चान्द है, बुझेगा नहीं तब तक।

  • रविकुमार बाबुल



http://babulgwalior.blogspot.com/

सपने...

Friday, November 4, 2011

वो




आंचती हुई काजल को
वो कैसे मुस्कुरा रही है |,

लुफ्त उठा जीवन का
मोहब्बत की झनकार में
अपनी धुन में मस्त उसकी
पायलियाँ गीत गा रही हैं |

केशो को सवारकर 
चुनरी ओढ़ वो घूँघट में
लज्जा से सरमा रही है |

साज सज्जा से हो तैयार
खुद को निहार आइने में
नजरे झुका और उठा रही है |

इंतज़ार में मेरे वो सजके
भग्न झरोखे में छिपकर
मेरा रास्ता ताक रही है |

- दीप्ति शर्मा 

Thursday, November 3, 2011

मेरी जिंदगी की झील में.........संजय भास्कर

उन्होंने कहा सबसे प्यार करो
जिन्दगी खुद ही प्यारी हो जाएगी
मैंने कोशिश की पर कर नहीं पाया
हर किसी को प्यार दे नहीं पाया
उसने भी मेरा साथ न दिया 
चाहा न उसने मुझे बस देखती रही 
मेरी जिंदगी से 
वो इस तरह खेलती रही ,
न उतरी वो कभी 
मेरी जिंदगी की झील में ,
बस किनारे पर बैठ कर पत्थर 
फेकती रही ............!

......................संजय भास्कर