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Wednesday, August 24, 2011

ख्वाहिश है मेरी ....।


जिंदगी का सफर आसां हो जाये,
यह मोड़ भी रूखसत हो जाये।
खुद को खोजना बाकी ही कहां रहे,
जो तू मुझ तक पहुंच जाये।

जिंदगी के तमाम लम्हों का कर लें हिसाब,
आओ किसी मोड़ पर थोड़ा ठहर जायें।
मेरी सांसों की तरह अटका हुआ कोई लम्हा,
किसी टहनी पर कहीं छूट न जाये।


मौत के सफर का मुसाफिर जिन्दा रहे,
राह में तेरी याद की ताबीर लिपट जाये।
मंजिल से दूर रहने की सजा काट लूंगी,
बस तू मेरी राह की तकदीर बन जाये।

मेरी मुस्कुराहटों ने की है मेरे दर्द की पर्देदारी,
कि क्यूं तेरे दिये जख्म दिखलायें जाये।
मेरी चाहत, मेरी सोच तुझ तक जाकर जाती है ठहर,
तेरी यादों में मैं भी हूं शुमार इतना यकीं हो जाये।

करूंगी न जिक्र कभी तेरे-मेरे गुनाहों का,
चाहे मुझको कैसी भी सजा हो जाये।
खुदा की बन्दगी में मेरे साथ,
तू भी कभी शामिल हो जाये।

सोचती हूं मैं, जिस्म का जिल्द,
चाहे मौसम की तरह बदल जाये।
रूह में रहे तू सदा, मन न बदले कभी,
ख्वाहिश है मेरी, बस इतना हो जाये।

मेरी तन्हाई, मेरी उदासी पूछती है तेरा ठिकाना,
कभी गुजरे तू इधर से, ठिठककर रुक जाये।
अश्क में, तेरे अक्स पर रक्स होगा मुझको,
हकीकत भी तू था, यादों में भी तू, हम हर-सूं तुझे पायें।

  •  कोमल वर्मा

4 comments:

  1. ज़िस्म का जिल्द चाहे बदल जाये , रूह में तू हमेशा शामिल रहे ...
    वाह !
    सुन्दर प्रस्तुति!

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  2. komal bhavnaon se saji ek bahut payri si rachna..jiska har lafz pyar or samarpan mei dooba hai..

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