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Wednesday, August 31, 2011

इंतज़ार........


शब्द को सुन  कर ही 
लगता है लम्बा समय है 
अगर कोई किसी को इंतज़ार 
करने के लिए कहता है तो फिर 
पूछिये मत क्योंकि सभी को
मालुम है कि इंतजार की घड़ी 
कितनी लम्बी होती है ?
हर एक पल एक सदी के समान गुजरता है 
और मैंने भी तो काफी इंतज़ार किया है, 
इंतज़ार...
इस शब्द का अर्थ मुझसे 
अच्छा और कौन बता सकता है 
क्योंकि मैंने पूरी जिंदगी 
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा 
इंतजार ही तो किया है 
पर पता नहीं यह मौत 
आजतक आई क्यों नहीं........???

नीलकमल वैष्णव"अनिश"

एक लघुदीप की लौ




इक खामोश अँधेरी रात की, इक रोशनी कहती है,
ये जो चमक है, उस लघुदीप की कहानी कहती है,
जिसकी लौ में जिजीविषा की, छोटी झलक दिखती है,
और इस अथाह अँधेरे से, लड़ने की कोशिश दिखती है॥

ये रात से जंग जीत लेने की, ख्वाइश दिखती है,
मजलूम की ईश्वर से की गयी, फरमाइश लगती है,
इस कालिमा में भले ही, बस निपट अकेली होती है,
फिर भी, इस रात के सूनेपन में लहराती रहती है॥

इस लघुदीप की मद्धिम लौ, खुद ये कहानी कहती है,
ये सरसराती हुई ठण्डी हवाओं की, जुबानी कहती है,
जूझती हुयी काल के थपेडों सेऐसा लगे जैसे युद्ध में,
आखिरी बचे सिपाही के, ध्वज की निशानी होती है॥

इसे शायद बस इसी तरह, जीने की आदत लगती है,
या व्यक्ति की निराशा देख, हँसने की चाहत लगती है,
और इन्सान को कठिनाइयों से, लडने की प्रेरणा देती है,
या नयी सुबह की आशा जगाने की, कोशिश लगती है॥

किसने सिखाया होगा इन्हें, बस यूँ जिहाद करना,
और फ़िर औरों के लिये, खुद को ही यूँ बर्बाद करना,
इन्हे छोटा बताना तो, अन्धेरों की साजिश लगती है,
हमारी भी इन्ही की तरह, जीने की ख्वाईश रहती है॥

हमारी भी इन्ही की तरह, जीने की ख्वाईश रहती है।
बस इन्ही की तरह, फ़ना होने की कोशिश होती है॥

Tuesday, August 30, 2011

शिकायत


आज तुम्हारी यादें,
सिरहाने बैठकर,
रोई थी मेरे।
भींगे तकिये ने,
की है शिकायत,
मुझसे।



  • रविकुमार बाबुल



मुझे तुमसे प्यार है



पहली बार,
जब आंखें मेरी हो गयी थी दरिया।
पहली बार,
पूछा था तुमने क्या हुआ......?
पहली बार,
जी में आया कह दूं,
मुझे छोड़कर मत जाओ?

पहली बार,
तुमने भी किया था वायदा,
लौटकर आने का?
पहली बार,
लगा कह दूं तुमसे,
मुझे तुमसे प्यार है।
पहली बार,
तुम भी अपने टूटे भरोसे के साथ मिली?

पहली बार,
तुम्हारा सच सुना मैनें।
पहली बार ही नहीं,
आखिरी बार भी कहता हूं,
मैं तुमसे प्यार करता हूं।
पहली बार,
तुम भी कह दो न,
कि तुम्हें भी मुझसे प्यार है?




  • रविकुमार बाबुल




Friday, August 26, 2011

इक पेड़ की हँसी






छोटी सी चोट पर हीलोग रोया करते हैं बहुत यूँ ही,
दूसरे का हक मरकर भीखुश रहा करते हैं बहुत यूँ ही,
हमसबकोअपना सब कुछदेने से ही नहीं अघाते,
लोगों से जख्म पाने पर भीहँसा करते हैं बहुत यूँ ही॥

चोट हो बच्चों के पत्थर की फल के लिएतब तो हम,
उनकी आँखों में ख़ुशी देखकरहँसा करते हैं बहुत यूँ ही,
गर हो जख्म लालची मनुष्य की कुल्हाड़ी कातो हम,
ये अहसानफरामोशी देखकर हँसा करते हैं बहुत यूँ ही॥

हाँ और कुछ दिन जीने की चाहत तो हम भी रखते हैं,
इस दुनिया को और देने की चाहत तो हम भी रखते हैं,
हमें तो ये निर्दयी इंसान निचोड़ता रहता है बहुत यूँ ही,
और इसकी खुदगर्जी पर हम हँसा करते हैं बहुत यूँ ही॥

हम करें भी तो क्यारब ने हिलने से मना जो किया है,
बोल भी नहीं सकतेउससे न बोलने का वादा जो किया है,
बस देख सकते हैं मानव से खुद को लुटते हुए बहुत यूँ ही,
और अपनी इन्ही मजबूरियों पर हँसा करते हैं बहुत यूँ ही॥

अनजाने में ये खुद को मिटाने की कोशिश किया करते हैं,
इन्हें सब कुछ पाने की हसरत रहा करती है बहुत यूँ ही,
हमें सब कुछ लुटाने की चाहत रहा करती है बहुत यूँ ही,
इन पर मुस्कुराने की आदत रहा करती है बहुत यूँ ही॥



Wednesday, August 24, 2011

कोरे सपने.......



बिना तुम्हारे बंजर होगा आसमान 
उजड़ी सी होगी सारी जमीन 
फिर उसी धधकते हुए सूर्य के प्रखर तले 
सब ओर चिलचिलाती काली चट्टानों पर 
ठोकर खाता, टकराता भटकेगा समीर 
भौंहों पर धुल-पसीना ले तन-मन हारा 
बेचैन रहूंगा फिरता मैं मारा-मारा
देखता रहूँगा क्षितिजों की 
सब तरफ गोल कोरी लकीर 
फिर भी सूनेपन की आईने में  चमकेगा लगातार 
मेरी आँखों में रमे हुए मीठे आकारों का निखर 
मैं संभल न पाऊंगा डालूँगा दृष्टि जिधर 
अपना आँचल फैलायेगी वह सहज उधर.......
नीलकमल वैष्णव"अनिश"
०९६३०३०३०१०
०९६३०३०३०१७

ख्वाहिश है मेरी ....।


जिंदगी का सफर आसां हो जाये,
यह मोड़ भी रूखसत हो जाये।
खुद को खोजना बाकी ही कहां रहे,
जो तू मुझ तक पहुंच जाये।

जिंदगी के तमाम लम्हों का कर लें हिसाब,
आओ किसी मोड़ पर थोड़ा ठहर जायें।
मेरी सांसों की तरह अटका हुआ कोई लम्हा,
किसी टहनी पर कहीं छूट न जाये।


मौत के सफर का मुसाफिर जिन्दा रहे,
राह में तेरी याद की ताबीर लिपट जाये।
मंजिल से दूर रहने की सजा काट लूंगी,
बस तू मेरी राह की तकदीर बन जाये।

मेरी मुस्कुराहटों ने की है मेरे दर्द की पर्देदारी,
कि क्यूं तेरे दिये जख्म दिखलायें जाये।
मेरी चाहत, मेरी सोच तुझ तक जाकर जाती है ठहर,
तेरी यादों में मैं भी हूं शुमार इतना यकीं हो जाये।

करूंगी न जिक्र कभी तेरे-मेरे गुनाहों का,
चाहे मुझको कैसी भी सजा हो जाये।
खुदा की बन्दगी में मेरे साथ,
तू भी कभी शामिल हो जाये।

सोचती हूं मैं, जिस्म का जिल्द,
चाहे मौसम की तरह बदल जाये।
रूह में रहे तू सदा, मन न बदले कभी,
ख्वाहिश है मेरी, बस इतना हो जाये।

मेरी तन्हाई, मेरी उदासी पूछती है तेरा ठिकाना,
कभी गुजरे तू इधर से, ठिठककर रुक जाये।
अश्क में, तेरे अक्स पर रक्स होगा मुझको,
हकीकत भी तू था, यादों में भी तू, हम हर-सूं तुझे पायें।

  •  कोमल वर्मा

Tuesday, August 23, 2011

अपनी कलम ...



कोई बेवजह मर जाता है 
तो कोई लड़ -लड़ कर 
मगर मुझे लड़ना है 
अपनी कलम ... की ताकत से 
हर जंग फतह करना है 
गरीबों को इंसाफ नहीं मिलता 
इसलिए ,किसी से भी लड़ जाता हूँ 
कब सुधरेगा हमारा सभ्य संसार ?
ये सोंचके अड़ जाता हूँ 

लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल "

Saturday, August 20, 2011

बोला सुभाष


From Google


यहाँ देश धर्म करते करतेमैं चलते चलते ठहर गया,
भारत को एक करते करतेमैं ही टुकड़ों में बिखर गया,
अरे मेरा भी इक जीना थाबहता जो खून पसीना था,
इस धरती की सेवा करतेबहते बहते बस निकल गया॥

जो निकल गया सो निकल गयाइस आज़ादी की राहों में,
उसकी सोचो जो तेरी रगों मेंबहता बहता ही सूख गया,
अब जाग और पहचान मुझेहे देशभक्तक्या पता तुम्हें?
बोला सुभाषलड़ते लड़ते इस धरा से कब मैं चला गया?

इस धरती माँ के आँचल मेंमैं तो कल ही था गुजर गया,
अब भूल मुझे बस आगे बढभविष्य बना ले अब उज्वल,
मुझको तो कुछ गद्दारों नेथा इस गुमनामी में ला पटका
दुःख तो बस इतना है साथीतू तो खुद को भी भूल गया॥

जाग मुसाफिर जागये तेरा अँधियारा भी गुजर गया,
अब खोल डाल गाँधी की पट्टादशकों से जो बंधा हुया,
आजादविस्मिल और भगत के बलिदानों को भूल गया,
भूल गया दुर्गा भाभी को और सावरकर को भूल गया॥

भूल गया तू धर्मवीर वंदा वैरागीमहाराणा प्रताप को,
वीर शिवा के वंशजगुरु गोविन्द सिंह को भूल गया,
भूल गया चन्द्रगुप्त की गरिमा और वीरता भूल गया,
तप्त रक्त के धारक साथी खुद को क्यूँ अब भूल गया?

तू किन सपनों के धोखे मेंअब आलस्य में है ध्वस्त पड़ा,
पहचाना स्वयं को अब तकया यूँ ही किसी से बिदक गया,
कर्तव्यज्ञान हो गया हो अबतो कर्मक्षेत्र सम्मुख है पडा,
बोला सुभाष हे कर्मवीरआज तू अपनी क्षमता भूल गया?

बोला सुभाष हे भरतवीरतू अपनी माँ को ही भूल गया?


Mai Anna Hoon...


अन्ना तुम संघर्ष करो ,
मै तुम्हारे साथ हूँ...
अन्ना तुम आश्वस्त रहो,
कि मै तुम्हारे साथ हूँ.
ना मै कोई राजा  हूँ,
ना मेरा कोई ताज है..
कल मै साधारण बच्चा था ,
और वैसा ही आज है.
पर इस परिवर्तन की आंधी में
एक बदलाव तो आया है
हर व्यक्ति हर मानस में,
अन्ना का स्वरुप पाया है...
भ्रष्टाचार मिटाना है
यह जनता की ललकार है,
यह बचकानी बात नहीं...
ये जनता की हुंकार है.
नहीं झुके हैं, नहीं झुकेंगे 
ये ही मन में ठाना है...
क्यूंकि लोकतंत्र की शक्ति को,
अब हमने पहचाना है.
यह विश्वास न मिटने पाए, 
यह निश्चय न डिगने पाए,
आओ मिल संकल्प करें...
रंग जाति का भेद मिटा कर
मिल कर सब संघर्ष करें...
क्यूंकि अन्ना की इस आंधी में,
जो भाग न ले बेकार है...
आखिर यह लोकशाही की जीत और,
भ्रष्टाचार की हार है.

Wednesday, August 17, 2011

ज्ञान की कुंजी......


बिना किराये का मकान  - जेल  

सुबह की घड़ी               - मुर्गा  

कलयुग का अमृत         - चाय 

कलयुग का देवता         - चोर 

आज की स्टाइल          - बाब कट 

आज की फिल्म           - मार-धाड़ 

खेत का राजा              - किसान 

हमारे स्कूल का सेन्टर  - बैरान 

चारा घोटाले का नायक - लालू प्रसाद यादव 

आज का गुंडा             - पुलिस 

घोटाले का राजा          - नरसिंह राव 

कापियों में सबसे आगे - रफ कापी 

इज्जतदार आदमी      - माफिया डान 

मार-धाड़ करने में सबसे आगे - स्कूली विद्यार्थी

सेर सुनने में मजा आता है, सेर सुनाने में मजा आता है 
अगर हो शेर सामने तो फिर... भागने में मजा आता है !!!
हा हा हा हा हा हा हा..... 
दोस्तों आज के लिए इतना ही बाकी
किसी और दिन सुनायेंगे अब अपने 
इस ब्लागर मित्र को विदा दीजिये नमस्कार...


नीलकमल वैष्णव "अनिश"
http://neelkamalkosir.blogspot.com
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http://neelkamaluvaach.blogspot.com

Tuesday, August 16, 2011

महात्मा गाँधी के देश में अनशन का अधिकार नहीं


महात्मा गाँधी के देश में अनशन का अधिकार नहीं,
कैसा स्वतत्रंता  दिवस और किसका स्वत्रंता दिवस?
जहाँ आम आदमी को अपनी बात कहने का अधिकार नहीं!!

कैसा १५ अगस्त और कैसी २६ जनवरी ?
कैसा लोकत्रंत है और किसका लोकत्रंत ?
जहाँ आम आदमी को अपनी बात कहने का अधिकार नहीं!!

सरे आम  हुई लोकत्रंत की हत्या , हो के अन्ना की गिरफ़्तारी
लोकत्रंत का यहाँ सम्मान नहीं,
महात्मा गाँधी के देश में अनशन का अधिकार नहीं!!

शहीदों ने की थी आजादी की कामना,
अपने लोगों की गुलामी को किया था बलिदान नहीं,
महात्मा गाँधी के देश में अनशन का अधिकार नहीं!!

माफ़ करना तुम  इस देश की जनता को,तुम्हारा सपना रहा अधूरा,
आजादी का हुआ सम्मान नहीं,
मिली  स्वत्रंता ऐसी जहाँ आम आदमी को अपनी बात कहने का अधिकार नहीं!!

देश बन गया भ्रष्टाचार का भंडार,स्वत्रंतता अ यहाँ नाम नहीं 
नेता घूम रहे खुले आम लिए घोटालों का भंडार
वहीँ आम आदमी कोजीने का अधिकार  नहीं!!

 स्विस बैंक में नेताओं के  नोटों का भंडार,
आम आदमी के पास  खाने  को अनाज  नहीं,
महात्मा गाँधी के देश में अनशन का अधिकार नहीं!!
     
अन्ना हमको पूरी आजादी दिलाओ जो शहीदों ने चाही, 
जहाँ आम आदमी को अपनी बात कहने का अधिकार मिले 
वर्ना हमको जीने का अधिकार नहीं!!

  http://harshitajoshi.blogspot.com/

Monday, August 15, 2011

15 अगस्त....


आप सभी मित्रों को स्वतंत्रता की ६५ वीं सालगिरह 
के इस पावन अवसर की अनेकानेक बधाईयाँ
आज हमारे देश को आजाद हुए ६५ वर्ष हो गए,
पर क्या हम सचमुच सम्पूर्ण रूप से
आजाद हैं ? 

क्या यह वही भारत है जिसका सपना हमारे 
वीर सपूतों ने अपनी प्राणों की बलिदान 
देकर देखी थी ?

पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे पर आज  हम
महंगाई, भ्रष्ट नेताओं और अफसरों के
गुलाम है,


महंगाई इस कदर हमें घेर चुकी 
है जहाँ से निकालने का कोई राह दिखाई
नहीं पड़ रही है
इस महंगाई रुपी डायन का अत्याचार 
इस कदर है कि इसकी मार सभी 
वस्तुओं पर देखी जा सकती है इसकी
असर को
खैर मैंने तो आप लोगों को स्वतंत्रता दिवस 
कि बधाई देने के लिए लिखना शुरू किया 
था पर मैं भटक कर कहाँ जा रहा हूँ इस
महंगाई के फेर में ........

पर एक बात जरुर बोलूंगा कि मुझे तो पता
है की मैं भटक कर कहाँ जा रहा था पर...
क्या किसी को पता है की यह देश की 
महंगाई कहाँ और किस ओर जा रही है ???
नीलकमल वैष्णव"अनिश"
http://neelkamalkosir.blogspot.com
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http://neelkamaluvaach.blogspot.com 

Sunday, August 14, 2011

एक सुहाना सफ़र


एक नया एहसासकुछ नए अल्फाज,
पल पल हम बढ़ रहे साथ साथ साथ,
एक नयी डगर पे,एक नए सफ़र की ओर!!

वो सफ़र जो लाया अपने साथ,
कुछ नए लम्हात,कुछ नए एहसास,
कुछ नए दिन और कुछ नयी बात!!

पा कर आप सभी का प्यार,
बढ़ चले साथ साथ,
एक नयी डगर पे,एक नए सफ़र की ओर!!

आँखों में लिए सपने हज़ार,करना है जिनको  साकार,
बढ़ चले साथ साथ,
एक नयी डगर पे,एक नए सफ़र की ओर!!

सामने खडी है एक नयी जिंदगी,
स्वागत को उत्सुक परिवार,ले कर उम्मीदे हज़ार,
बढ़ चले एक नए सफ़र पे , ले कर सबको साथ!!
एक नयी डगर पे,एक नए सफ़र की ओर!!

आयीं है नयी खुशियाँ और सपने  हज़ार,
करना है जिनको साकार,
हम बढ़ चले साथ साथ,
एक नयी डगर पे,एक नए सफ़र की ओर!!

सामने खड़े हैं कुछ नए पल,
इंतजार किया जिनका हर पल!!
नए रिश्तों को संजोते हुए
हम बढ़ चले एक नए सफ़र पेएक नयी डगर की ओर!!

Saturday, August 13, 2011


आप सभी ब्लागर पाठकों को रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं 
नीलकमल वैष्णव "अनिश"

Thursday, August 11, 2011

आखिर कब तक



यूँ मृतप्राय पड़े बस सोने से, क्रांति नहीं हुआ करती,
खुद पेट भर लेने से, राष्ट्र की भूख नहीं मिटा करती,
तेरे केवल जी लेने से, ये दुनिया नहीं जिया करती,
मत भूल बिन राष्ट्र तेरी भी, जिंदगी नहीं चला करती॥

कब तक बना रहेगा गर्दभ, अपनी अपनी किये रहेगा?
खुद का जीवन सुखमय, कब तक खुश ही बना रहेगा?
एड़ी छोटी घिस, स्वयं का भबिष्य बनाने की कोशिश,
करते करते यूँ ही तू, अब हल से कब तक जुता रहेगा?

मानव बन अब तो जाग, पहचान स्वयं को जीवित हो जा,
सोच समझ, कुछ कदम बढ़ा, कब तक भेडचाल चलेगा?
आज़ाद देश का पंछी है तू, ज्वालामुखी छिपाए अन्दर,
खुद को भूल, राष्ट्र पर यूँ ही, कब तक बोझिल बना रहेगा?

उतार जंग की परतों को अब, तलवारों में लगी हुयी,
तिलक लगा रक्त से अब,कब तक म्यान में ही रखेगा?
प्रारम्भ कर इन गद्दारों से, सफ़ेद रंग के सियारों से,
फिर बदल दे भारत का नक्शा भी, यूँ राष्ट्र तू बदलेगा॥

जाग अब तो जाग क्रांतिवीर, कब तक हल से जुता रहेगा?

कुछ बातें मेरे मन की...........।

सावन जाने को है, बूंदों ने जिस्म पर ही नहीं, मन पर भी बहुत कुछ लिखा होगा, कुछ पढ़ लिये गये होगें, तो कुछ मेरे जैसे भी होगें, जिनका बहुत कुछ अनपढ़ा ही रह गया होगा? खैर... यह नसीब का मुआमला है, इसमें दखल की इजाजत, रिमझिम बरसती बूंदों के बीच सूरज की मानिन्द नहीं मिलनी चाहिये? जी... जब सावन में छाये मेघ किसी की हां की वजह बन जाये, और यही हां बूंदों से साजिश रच कर इंकार का सबब भी बने, तब ऐसे में आंखों से बरसती बूंदे, बरसते सावन में शर्मसार होने से जरूर बच गई होंगी? हां, अक्षरों के रूप में कागज पर बरसने से इन्हें कौन रोक सकता था....? सो.... उसकी हां कागज की किसी किश्ती की तरह भले ही बारिश में अपना स्वरूप खो बैठी हो, लेकिन उसके वजूद से किस आसमान को या दरिया को इंकार होगा? सो... उसकी तरह बिछड़ते सावन में कुछ बातें मेरे मन की...........।
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बिखरा हुआ यह सूनापन
दरिया सूखी, पोखर सूखे और सूखा मन।
कैसे कहूं, झूम के बरसा है सावन।

नींद का जब टूटा आंखों से रिश्ता,
सूरज आया, चांद भी उतरा था आंगन।

तेरी आंखों में नमीं, डूब गया मैं,
क्या किया गुनाह जो निकली नहीं जान।

सब छोड़ दूं, रिश्ता सबसे तोड़ दूं,
जब से भटका दर-दर यह अपनापन।

तुम आ जाओ तो दूर हो जाये,
मेरी जिन्दगी में बिखरा हुआ यह सूनापन।
रविकुमार बाबुल

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बारिश लिख
साथ हो उसका और तू बारिश लिख।
सावन में बस तू यह ख्वाहिश लिख।

उसने मेरे मुकद्दर में लिखा है तन्हाई,
खुदा तू मेरे आंखों में बारिश लिख।

कोई शोर नहीं, जब उसने तोड़ा दिल,
सावन में मेघ, तू ऐसी आतिश लिख।

तुम हो जाओ मेरी, जो न बनो,
तब नसीब में कजा की गुजारिश लिख।

अपना मुकद्दर बना लूं उसको, चाहा मैनें,
उसके दिल भी कुछ ऐसी ख्वाहिश लिख।

रविकुमार बाबुल

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  शर्मसार
तुम्हारे दिये जख्म,
बन कर अश्क,
जो बह निकले मेरी आंखों से,
डूब जाती,
सारी कायनात।
वह तो अच्छा हुआ,
मैं पी गया खारा पानी,
और बचा लिया,
तुम्हें शर्मसार से।
रविकुमार बाबुल

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सफर
आज फिर तुम मिले,
आज फिर मैं तन्हा रहा।
बारिश ने भी रोकना चाहा तुम्हें,
मेरी तरह मगर,
तुम्हारा सफर,
तय रहा।
रविकुमार बाबुल
-----------
 

......सवाल ??????

ITS MY FIRST POST ON KAVITABAZI,...
AM THANKFUL TO ALL, FOR LETTING ME SPACE TO WHISPER MY EMOTIONS...


 बारिस के मौसम में

सूखे पत्ते क्यूँ सरसराते है??
ये बूंदे क्यूँ खामश है??
कोई आहट क्यूँ दस्तक नहीं देती ??
मैखाने में पैमाने क्यूँ नहीं छलकते ??
सब कुछ जानकर भी ,..ये सारा जहां अनजान क्यूँ है??

हर पल को जीता मैं...
हर लम्हा संवारता मैं...
ये कहाँ मशरूफ हो गया हूँ...??

ये सारे सवाल..
ये सवाल क्यूँ है ???


...........इस बार , ये बरखा,.. इतना क्यूँ सताती है???

Wednesday, August 10, 2011

जागो


देखो आज फिर लहूलुहान है भारत माँजागो,
अब सार्थक आजादी माँगती है भारत माँजागो,
फिर एक नया सुभाष माँगती है भारत माँजागो,
फिर से एक क्रांति माँगती है भारत माँजागो॥

जागो अब तो जागोकब से मृतवत सोने वालों,
सबके जुल्मों को अपने सर कब से ढ़ोने वालों,
पहचानो अपनी क्षमता और कमर भी कस लो,
एक और बलिदान माँगती है भारत माँजागो॥

अब तो जागोस्वाभिमान बेचकर सोने वालों,
तनिक कष्ट होने पर ही फूट फूट कर रोने वालों,
इस धरती के टूटे अंगो को अनदेखा करने वालों,
इस ऋण का प्रतिदान माँगती हैभारत माँजागो॥

फिर एक नया सुभाष माँगती है भारत माँजागो,
फिर से एक क्रांति माँगती है भारत माँजागो॥