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Friday, July 29, 2011

ज्यूँ मैं जला हूँ सनम तुम जलना मत

मेरी चाहत में  नियत को बदलना मत ,
ज्यूँ मैं जला हूँ सनम तुम जलना मत

लहरें खामोश अगर हैं तो क्या हुआ ,
बिना कश्ती के,समुंदर में ,उतरना मत

गुलशन में बहारों का मज़ा लेना मगर ,
भंवरे को गुल से दूर कभी ,रखना मत

मौसम का मिजाज़ न बदल जाए कहीं
चंद शोहरत पा कर कभी ,मचलना मत

नकाब पोशों का शहर है आम यहाँ ,
बेकरारी में यकीन कभी , करना मत ,

रूह को समझ ले अब तो मुसाफिर
सफ़र में ,सिर्फ चेहरों को ,परखना मत

2 comments:

  1. अच्छा प्रयास है नीलांश...कुछ शानदार तो वाकई लाज़वाब हैं..
    लहरें खामोश अगर हैं तो क्या हुआ ,
    बिना कश्ती के,समुंदर में ,उतरना मत...!

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