मेरे अहसासों की उस हवा
की महक सी है मेरी हस्ती
कोशिश करूँ तमाम पर
हिचकोलो से गुजरती हुई
चलती है ये मेरी कस्ती
तमाम उलझनों से जुझते
जिन्दगी की राहों से अनजान
ढलती हुई जीवन की मस्ती
ख्वाहिशो की अभिलाषा सी
सच्चाई तलाशती हुई है
चाँद लम्हों की मेरी बस्ती|
- दीप्ति शर्मा
jindgi talashti panktiya....
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत रचना...
ReplyDeleteवाह बेहतरीन !!!!
ReplyDeleteaap sabhi ka dhanyevad
ReplyDeleteदीप्ती जी सप्रेम अभिवादन ...
ReplyDeleteहमें कविताबाजी की सदस्यता प्रदान करें इसी विश्वाश के साथ ......
Word verification हटा देवें टिप्पणी करने में परेशानी होती है
धन्यवाद ...
बहुत ही खुबसूरत रचना...
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