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Sunday, July 31, 2011

जिन्दगी

मेरे अहसासों की उस हवा
की महक सी है मेरी हस्ती
कोशिश करूँ तमाम पर
हिचकोलो से गुजरती हुई
चलती है ये मेरी कस्ती
तमाम उलझनों से जुझते
जिन्दगी की राहों से अनजान
ढलती हुई जीवन की मस्ती
ख्वाहिशो की अभिलाषा सी
सच्चाई तलाशती हुई है
चाँद लम्हों की मेरी बस्ती|


- दीप्ति शर्मा

6 comments:

  1. बहुत ही खुबसूरत रचना...

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  2. दीप्ती जी सप्रेम अभिवादन ...
    हमें कविताबाजी की सदस्यता प्रदान करें इसी विश्वाश के साथ ......
    Word verification हटा देवें टिप्पणी करने में परेशानी होती है
    धन्यवाद ...

    ReplyDelete