रास्ते ये सारे मुड़े क्यूँ हैं ?
और तकदीर से ये
हमारी जुड़े क्यूँ हैं ?
जब होती नहीं कोईभी मुराद पूरी तोदर पर ख़ुदा केइबादत को इंसाके सर झुके क्यूँ हैं ?
ख़ुदा ना ले इम्तिहान
कोई अब हमारा
तो कभी यूँ लगे कि
इम्तिहानों के सिलसिले
रुके तो रुके क्यूँ हैं ?
सुन ले ए ख़ुदा अबहमारी हर मुरादजब मुराद ना हो पूरीतो लगे कि अबख़ुदा कि फ़रियाद मेंये हाथ खड़े क्यूँ हैं ?
तेरी रहमत को ये ख़ुदा
हम खड़े क्यूँ हैं ?
पाने को हर सपना
आखिर हम अड़े क्यूँ हैं ?
- दीप्ति शर्मा
दीप्ति शर्मा जी ने बेहद खूबसूरत शब्दों से नवाजी है कविता , भाविभोर कर गयी , बधाई
ReplyDeleteसंजय भास्कर जी एक गंभीर बात कहनी है कृपया इसे अन्यथा न ले , कवितायेँ लिखना एक गंभीर लेखन है और संवेदनशील कार्य भी आप मानते है न , आपका ब्लॉग शीर्षक "कविताबाजी" खटकता है दिलों में . आपने कविताओं का संकलन अच्छा किया है बस जो खटकता है उसे कहना , ब्लॉग की गरिमा को बनाये रखने के लिए कहना जरूरी समझा , कृपया विचार करे , शुभकामनाये
अद्भुत है ये शब्द रचना,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
ReplyDeleteआदरणीय दीप्ति जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
पाने को हर सपना आखिर हम अड़े क्यूं हैंं, बहुत खूब......।
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर
आदरणीय कुश्वंश जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
संजय भाई को सम्बोधित आपकी टिप्पणी पढऩे को मिली, जी... आप अपनी जगह सही हैं, लेकिन कई नामचीन हस्तियों के उपनाम कुछ ऐसे होते हैं, जिनको बोलने में काफी दिक्कत होती है, या कहें शर्मिंदगी । लेकिन फिर भी ..., आपकी बात से सहमत हूं... । और संजय भाई के दिल पर भी सीधा निशाना सधा होगा कि...। खैर ... गहन चिन्तन के लिये शुक्रिया।
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर
simply awesome... touched the core...
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