कलकल करती सब कुछ सहती, कभी किसी से कुछ ना कहती , अनजानी राहों में मुड़ती बहती , चलती रहती नदियाँ की धार|
लटरें भवरें सब हैं सुनते , साथ में चलती मंद बयार ,कौतूहल में सागर से मिलती पर , चलती रहती नदियाँ की धार |
जुदा हो गयी हिम से देखो , तट से लिपट बहा है करती, सुनकर वो मस्त बहार,
फूल पत्तियाँ जलज औ पाथर, पथ में आए बार बार , अपने मन से हँसती गाती, चलती रहती नदियाँ की धार | दीप्ति शर्मा
www.deepti09sharma.blogspot.com
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सुंदर रचना...
ReplyDeleteएक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
ReplyDeleteयही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!
बेहतरीन जज्बात बधाई
ReplyDeleteसुंदर |
ReplyDeleteबधाई ||
aap sabhi ka bahut bahut aabhar
ReplyDeletebahut badiya!
ReplyDeletevery nice
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