मेरी चाहत में नियत को बदलना मत ,
ज्यूँ मैं जला हूँ सनम तुम जलना मत
लहरें खामोश अगर हैं तो क्या हुआ ,
बिना कश्ती के,समुंदर में ,उतरना मत
गुलशन में बहारों का मज़ा लेना मगर ,
भंवरे को गुल से दूर कभी ,रखना मत
मौसम का मिजाज़ न बदल जाए कहीं
चंद शोहरत पा कर कभी ,मचलना मत
नकाब पोशों का शहर है आम यहाँ ,
बेकरारी में यकीन कभी , करना मत ,
रूह को समझ ले अब तो मुसाफिर
सफ़र में ,सिर्फ चेहरों को ,परखना मत
ज्यूँ मैं जला हूँ सनम तुम जलना मत
लहरें खामोश अगर हैं तो क्या हुआ ,
बिना कश्ती के,समुंदर में ,उतरना मत
गुलशन में बहारों का मज़ा लेना मगर ,
भंवरे को गुल से दूर कभी ,रखना मत
मौसम का मिजाज़ न बदल जाए कहीं
चंद शोहरत पा कर कभी ,मचलना मत
नकाब पोशों का शहर है आम यहाँ ,
बेकरारी में यकीन कभी , करना मत ,
रूह को समझ ले अब तो मुसाफिर
सफ़र में ,सिर्फ चेहरों को ,परखना मत
sunder...
ReplyDeleteअच्छा प्रयास है नीलांश...कुछ शानदार तो वाकई लाज़वाब हैं..
ReplyDeleteलहरें खामोश अगर हैं तो क्या हुआ ,
बिना कश्ती के,समुंदर में ,उतरना मत...!