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Thursday, July 21, 2011

लब तक खींचा अरु छोड़ गयी


मैं जोकर था क्या सर्कस का,
देखामुस्काया अरु भूल गयी।
या तीर था तेरे तरकश का,
लब तक खींचा अरु छोड़ गयी॥

मैं तो अंकुर हूँ जीवन का,
संसार तेरा भर देता मैं।

3 comments:

  1. चंद शब्दों में गहरी बात कहना कोई आपसे सीखे...बहुत अच्छी रचना...

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  2. बेहद सुन्दर रचना .आत्म विश्वास रिश्ता है इस में प्रेमी का केवल पीर नहीं .

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