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Saturday, July 16, 2011

नदी

                                                    
कलकल करती सब कुछ सहती,
कभी किसी से कुछ ना कहती ,
अनजानी राहों में मुड़ती बहती ,
चलती रहती नदियाँ की धार|


लटरें भवरें सब हैं सुनते ,
साथ में चलती मंद बयार ,
कौतूहल में सागर से मिलती पर ,
चलती रहती नदियाँ की धार |


जुदा हो गयी हिम से देखो ,
तट से लिपट बहा है करती,
सुनकर वो मस्त बहार,


फूल पत्तियाँ जलज औ पाथर,
पथ में आए बार बार ,
अपने मन से हँसती गाती,
चलती रहती नदियाँ की धार | 
 
दीप्ति शर्मा
www.deepti09sharma.blogspot.com

7 comments:

  1. एक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
    यही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!

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  2. बेहतरीन जज्बात बधाई

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