अगर आप भी इस मंच पर कवितायेँ प्रस्तुत करना चाहते हैं तो इस पते पर संपर्क करें... edit.kavitabazi@gmail.com

Friday, July 1, 2011

आखिर क्यूँ ?

                                                  


मंज़िल तो हैं सीधी पर 
रास्ते ये सारे मुड़े क्यूँ हैं ?
और तकदीर से ये
हमारी जुड़े क्यूँ हैं ?

जब होती नहीं कोई
भी मुराद पूरी तो 
दर पर ख़ुदा के 
इबादत को इंसा
के सर झुके क्यूँ हैं ?

ख़ुदा ना ले इम्तिहान
कोई अब हमारा 
तो कभी यूँ लगे कि
इम्तिहानों के सिलसिले 
रुके तो रुके क्यूँ  हैं ?

सुन ले ए ख़ुदा अब   
हमारी हर मुराद 
जब मुराद ना हो पूरी 
तो लगे कि अब 
ख़ुदा कि फ़रियाद में
ये हाथ खड़े क्यूँ हैं ? 

तेरी रहमत को ये ख़ुदा 
हम खड़े क्यूँ हैं ?
पाने को हर सपना 
आखिर हम अड़े क्यूँ  हैं ?

- दीप्ति शर्मा 

6 comments:

  1. दीप्ति शर्मा जी ने बेहद खूबसूरत शब्दों से नवाजी है कविता , भाविभोर कर गयी , बधाई

    संजय भास्कर जी एक गंभीर बात कहनी है कृपया इसे अन्यथा न ले , कवितायेँ लिखना एक गंभीर लेखन है और संवेदनशील कार्य भी आप मानते है न , आपका ब्लॉग शीर्षक "कविताबाजी" खटकता है दिलों में . आपने कविताओं का संकलन अच्छा किया है बस जो खटकता है उसे कहना , ब्लॉग की गरिमा को बनाये रखने के लिए कहना जरूरी समझा , कृपया विचार करे , शुभकामनाये

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...

    ReplyDelete
  3. आदरणीय दीप्ति जी,
    यथायोग्य अभिवादन् ।

    पाने को हर सपना आखिर हम अड़े क्यूं हैंं, बहुत खूब......।

    रविकुमार बाबुल
    ग्वालियर

    ReplyDelete
  4. आदरणीय कुश्वंश जी,
    यथायोग्य अभिवादन् ।

    संजय भाई को सम्बोधित आपकी टिप्पणी पढऩे को मिली, जी... आप अपनी जगह सही हैं, लेकिन कई नामचीन हस्तियों के उपनाम कुछ ऐसे होते हैं, जिनको बोलने में काफी दिक्कत होती है, या कहें शर्मिंदगी । लेकिन फिर भी ..., आपकी बात से सहमत हूं... । और संजय भाई के दिल पर भी सीधा निशाना सधा होगा कि...। खैर ... गहन चिन्तन के लिये शुक्रिया।

    रविकुमार बाबुल
    ग्वालियर

    ReplyDelete
  5. simply awesome... touched the core...

    ReplyDelete