अगर आप भी इस मंच पर कवितायेँ प्रस्तुत करना चाहते हैं तो इस पते पर संपर्क करें... edit.kavitabazi@gmail.com

Friday, July 22, 2011

तुम हो जाओ मेरी


किसी ने किसी को मांगा था,
मिन्नतें खुदा से करके,
जब हार गया खुदा,
उसने उसी से, उसको मांग लिया था?
आज मैंनें भी किया यही,
तुम्हारे साथ, तुम्हीं को मांगने,
खुदा की देहरी पर दी दस्तक मैनें,
वह यकीन दिला दे तुम्हें,
मेरी वफा का।
तुम सदा-सदा के लिये हो जाओ मेरी,
फिर चाहना खुदा का हो या चाहे तुम्हारा?

रविकुमार बाबुल
ग्वालियर

8 comments:

  1. बहुत ही भावपूर्ण और खुबसूरत रचना....

    ReplyDelete
  2. Depth of love and trust captured so beautifully...

    ReplyDelete
  3. सुन्दर शेली सुन्दर भावनाए क्या कहे शब्द नही है तारीफ के लिए .

    ReplyDelete
  4. अच्छी प्रस्तुति नए अंदाज़ हैं आपके .

    ReplyDelete
  5. ऐसी बेरुखी न दिखाओ, चेहरे से नूर टपकने दो |
    क्यूँ मोहब्बत को दबा रही हो, यूँ ही महकने दो |

    ReplyDelete