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Wednesday, July 6, 2011


साजिश

सच है, साजिशन रखा है मैंने,
तेरे दिये जख्म को हरा?
सोचता हूं,
जख्म भर गया तो,
जिंदगी जीने का ,
मकसद ही,
जाता रहेगा?


  • रविकुमार बाबुल 
  • ग्वालियर

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पल

कुछ पल मेरे नाम भी लिखो।
थोड़ी मुहब्बत मेरे नाम भी लिखो।

मुश्किल है तुझसे अब दूर जाना,
कभी करीब, मेरे नाम भी लिखो।

तेरी चाहत भी महफूज रहे, लेकिन,
अपना चाहना, मेरे नाम भी लिखो।

मैं बिछा दूंगा जिंदगी अपनी मगर,
वो सफर मेरे नाम भी लिखो।

कह कर क्या, देता खुशियां मैं,
गम सारे मेरे नाम भी लिखो।


  • रविकुमार बाबुल 
  • ग्वालियर


1 comment:

  1. भाव विह्वल व्याकुल मन की पीर ,मत हो भई इतना गंभीर .अच्छा लिखा है रविकुमार बाबुल जी .
    कहता है फूंक फूंक ग़ज़लें शायर दुनिया का जला हुआ ,
    आंसू सूखा कहकहा हुआ ,पानी सूखा तो हवा हुआ .
    फुलवारी का शौक़ीन मिला हर घर पथ्थर का बना हुआ ,
    उसके कैसा चेहरा देखा एक पीला तोता हरा हुआ ,.
    आंसू सूखा ...

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