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Tuesday, July 5, 2011

मेरे शब्दों को रिहा कर दो।


तुम मेरे गुनाहों को इस कदर फना कर दो,
जो कुछ है सवाल, उनमें जवाब भर दो।
मैं जिन्दगी की परतें न कभी खोलूंगी,
इस अनसुने जहाँ से कुछ न बोलूंगी,

बस तुम साथ मेरे इतनी वफा कर दो.....
                           मुझे आजाद न करो....लेकिन,
                           मेरे शब्दों को रिहा कर दो।

मेरी आंखों में चन्द कतरे बहते आंसू के,
मन में टीस उठाती, कुछ रिश्तों की गांठे।
और पाकर खोने की, कुछ उलझी-सी बातें।
जीवन में मिला, कितना मर्म छिपा है मुझमें,
मिले तमाम जख्मों को मैं कभी न तोलूंगी?

बस तुम मुझ पर इतनी दया कर दो.....
                        मुझे आजाद न करो....लेकिन,
                        मेरे शब्दों को रिहा कर दो।


  •  कोमल वर्मा

3 comments:

  1. wow.... bhut bhut acchi pyari rachna... shabdo ko riha kar do... very nice...

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  2. एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !

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  3. व्यथित पथिककी फ़रियाद करती रचना .
    मेरे शब्दों को रिहा कर दो .

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