जी... मुझसे जो भी अपराध हुआ उसके लिए मेरा मुंसिफ ही जिम्मेदार था। सजा वह कोई सुना देता तो सुकूं आ जाता, लेकिन गुनाहगार ठहरा दिया, सजा दी नहीं? भला ऐसे में न तो कोई ठाकुर खुश हो सकता है, और ऐसे में दुश्मन ही मान लिया हो उसने मुझको पर मैं कैसे रोने देता उसको, सो... शायद वह मुस्कराती दिखी हो आपको?
जी... आपने सही कहा कि हमारे अपराध की कोई सजा हमें नहीं मिली। वैसे सच कहूं यह सजा से कमतर ही कहां है, कि आज तलक इश्क में, उसकी बेरूखी की अदालत से रिहा ही कहां हुआ हूं? ... चाह है वह कोई भी सजा सुना दे, पर अपना तो कह दें?
वो तो पहले, अपराधी माना किये |
ReplyDeleteअपना दुश्मन जाना किये |
उनकी भलमनसाहत थी कि बोले थे नहीं ||
ये तो दिखावा है उनका --
मुस्करा रहे हैं चुपचाप
देखो बहाना किये ||
ठाकुर बहुत खुश हो रहा होगा --
अपराधी सब हो गए है रवि जी, ये ता अच्छा है सजा नहीं मिली अपना बनाने ki ,अच्छे शब्द बधाई.
ReplyDeleteआदरणीय रविकर जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
जी... मुझसे जो भी अपराध हुआ उसके लिए मेरा मुंसिफ ही जिम्मेदार था। सजा वह कोई सुना देता तो सुकूं आ जाता, लेकिन गुनाहगार ठहरा दिया, सजा दी नहीं? भला ऐसे में न तो कोई ठाकुर खुश हो सकता है, और ऐसे में दुश्मन ही मान लिया हो उसने मुझको पर मैं कैसे रोने देता उसको, सो... शायद वह मुस्कराती दिखी हो आपको?
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर
आदरणीय कुश्वंश जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
जी... आपने सही कहा कि हमारे अपराध की कोई सजा हमें नहीं मिली। वैसे सच कहूं यह सजा से कमतर ही कहां है, कि आज तलक इश्क में, उसकी बेरूखी की अदालत से रिहा ही कहां हुआ हूं? ... चाह है वह कोई भी सजा सुना दे, पर अपना तो कह दें?
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर