रविकुमार बाबुल
हां मैं अपराधी हूं,
मैंने अपराध किया है,
तुमसे पूछे बगैर,
तुम्हीं से प्यार करने का?
मेरे मुंसिफ हो तुम्हीं ,
प्यार को स्वीकार कर,
मेरे साथ इंसाफ कर देना?
या फिर करके इंकार ,
खुद अपराधी हो जाना?
तुम्हारे इस गुनाह की,
ताउम्र मैं,
सजा काट लूंगा?
एक नयी तरह की कविता , कहते रहिये बधाई
ReplyDeleteइस भावपूर्ण कविता पर ग़ालिब साहेब का यह शेर आपकी नज़र ;
ReplyDeleteकोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे नीमकश को,
यह खलिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता.
बहुत सुंदर ...लाजवाब प्रस्तुति.......
ReplyDeleteआदरणीय कुश्वंश जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
आपको मेरी कविता अच्छी लगी शुक्रिया।
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर
आदरणीय सुवीर रावत जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
जी......मेरी कविता भावपूर्ण लगी, इसके लिये धन्यवाद।
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर
आदरणीय प्रसन्न वदन चतुर्वेदी जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
इंसाफ सदैव सुन्दर और लाजबाब होता है, यह आपसे जाना? शुक्रिया।
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर