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Thursday, June 2, 2011

इंसाफ



रविकुमार बाबुल


हां मैं अपराधी हूं,
मैंने अपराध किया है,
तुमसे पूछे बगैर,
तुम्हीं से प्यार करने का?

मेरे मुंसिफ हो तुम्हीं ,
प्यार को स्वीकार कर,
मेरे साथ इंसाफ कर देना?
या फिर करके इंकार ,
खुद अपराधी हो जाना?
तुम्हारे इस गुनाह की,
ताउम्र मैं,
सजा काट लूंगा?

6 comments:

  1. एक नयी तरह की कविता , कहते रहिये बधाई

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  2. इस भावपूर्ण कविता पर ग़ालिब साहेब का यह शेर आपकी नज़र ;

    कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे नीमकश को,
    यह खलिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता.

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  3. बहुत सुंदर ...लाजवाब प्रस्तुति.......

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  4. आदरणीय कुश्वंश जी,
    यथायोग्य अभिवादन् ।

    आपको मेरी कविता अच्छी लगी शुक्रिया।

    रविकुमार बाबुल
    ग्वालियर

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  5. आदरणीय सुवीर रावत जी,
    यथायोग्य अभिवादन् ।

    जी......मेरी कविता भावपूर्ण लगी, इसके लिये धन्यवाद।

    रविकुमार बाबुल
    ग्वालियर

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  6. आदरणीय प्रसन्न वदन चतुर्वेदी जी,
    यथायोग्य अभिवादन् ।

    इंसाफ सदैव सुन्दर और लाजबाब होता है, यह आपसे जाना? शुक्रिया।

    रविकुमार बाबुल
    ग्वालियर

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