नसीब
मेरे नसीब ने जब चाहा था,
तुझको मुझसे छीन लेना।
मैंने चुराकर वक्त की नजरों से,
तेरी यादों को बो दिया था।
अब दिल मैं चुभता है कुछ,
यकीनन यह वो कांटा होगा,
जो फूलों की चाह में उग आया था?
तुमसे जुड़ी हर याद को
सम्हाले रखने की जिद् में।
रविकुमार सिंह
---------------
रिश्ते
जानता हूं मैं,
रिश्ते बदलने में
महारत हासिल है?
इसलिये,
मैंने उसके सामने,
उससे अपना रिश्ता,
बचा लिया?
अपने चाहने को
जब मैंने छिपा लिया?
रविकुमार सिंह
http://babulgwalior.blogspot.com/
naseeb aur riste bhut hi khubsurat rachna aur bhut sunder prstuti...
ReplyDeleteबेहतरीन शब्दों और भावो से सजी पंक्तियाँ
ReplyDeleteएक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
ReplyDeleteयही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!