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Saturday, June 25, 2011

नफरत


जिस शिद्दत से,
मैंनें किया है,
उसको प्रेम।

उतनी ही शिद्दत,
मुझे देखने को मिली,
उसकी नफरत में।

साथ रह कर भी हम,
न बदल पाये एक दूसरे को?
न मैं नफरत कर पाया उससे,
न वो प्रेम कर पायी मुझसे।


  • रविकुमार सिंह


2 comments:

  1. करते रहे प्रेम |
    २८ साल बाद किसी ने कहा था इसी शहर से
    कि उस समय समझ न पाए थे तुम्हे |
    अच्छा लगा था ---
    पर अच्छा लगने का कारन आज ५ सालों बाद भी न समझ पाया |
    लेखनी को कष्ट देते रहो--
    मस्त बहुत मस्त लेखन |

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  2. आदरणीय रविकर जी,
    यथायोग्य अभिवादन् ।

    जी... प्रेम होता ही है कुछ ऐसा कि जब वह पास होता है, तो लगता है, कायनात में बस एक यह ही साथ रह जायेगा? और जब यह प्रेम टूटकर बिखरता है तो इसको छोड़ सभी कुछ मिल जाता है, प्रेम को ढूढऩे में सदियां गुजर जाती है, फिर भी नहीं मिलता है। 28 वर्षो बाद जब कोई खनकती आवाज उस समय समझ न पाये थे तुम्हें, कहकर अपना सोया जादू जगा दे ...। तो रविकर जी समझ लीजिये आपने अच्छा नसीब पाया है। कारण भले ही न मिल पाये ढूंढऩे से लेकिन इस बहाने प्रेम का अक्स मिलता रहे यह क्या कमतर है?

    रविकुमार बाबुल
    ग्वालियर

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