यादें
बरसो बादल, जमकर बरसो?
मेरी आंखों से बरसते,
तन्हाई के बादल,
कोई बरसता हुआ न देख ले?
मालूम है,
वह नहीं भींगती है अब,
यादों में मेरी?
महफूज होगी वह,
बगैर मेरे भी?
फिर भी तमन्ना है मेरी,
बस एक बार फटे बादल,
और वह जिस्म ओढ़ ले मेरा,
सांसें दे दूं अपनी उसको?
ताकि ताऊम्र मेरी याद में,
बह बरसती रहे।
और मैं,
तमाम बूंदों की शक्ल अख्तियार कर,
उसे भींगोता रहूं,
बन कर याद।
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर
भींगते कुछ ख्वाब
बारिश में भींगते कुछ ख्वाब मेरे,
खो गये है कहीं,
मेरी आंखों से टपक कर?
जब तुम कागज की किश्ती
बहा रही हो?
और बहता यह ख्वाब,
कहीं मिले तुम्हें
तुम इसे अंजुरी में रख,
सच कर लेना,
इन बूंदों को मोती कर देना?
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर
साजिश
बारिश की साजिश नहीं थी,
पता था उसे,
मेरी आंखों का नसीब?
जब दिल का गम,
आंखों से बह आया था,
पढ़ लिया था बारिश ने?
तुमने ज्यों अपनाया नहीं मुझको,
पलकों ने भी,
इन बूंदो को कहां गले लगाया?
आज मैंने,
अश्कों को दरिया बना लिया,
तेरी तमाम यादों की किश्ती को
बहा दिया।
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर
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- चित्र गूगल से साभार
इन बूंदों को मोती कर देना ||
ReplyDeleteअति सुन्दर ||
सुन्दर कल्पना ! काश, आपके सपनों को पंख लगे.
ReplyDeleteबारामासा पर आपसे टिपण्णी अपेक्षित है.
- baramasa98.blogspot.com
bhut hi acchi aur pyari rachna... barish to ek bahana hai sab kuch to kah diya apne....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना ............
ReplyDeleteआदरणीय रविकर जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
सच तो यह है कि सभी बूंदे मोती हो जाये वह इतना सुकून नहीं देगी, जितना सुकून एक मोती बूंदें बन कर देती है। शुक्रिया।
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर
आदरणीय सुबीर रावत जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
बूंदे कोई या कैसी भी हो वह इन्सान को सोने ही कहां देती है? सो.... अपने सपनों को पंख कैसे लगा सकता हूँ? कल्पना को सराहने के लिए शुक्रिया।
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर
आदरणीय सुषमा आहुति जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
जी... सच कहा आपने बारिश तो यकीनन बहाना थी, वह तो कुछ यादों की जिद् थी जो बूंदे बन गई, सो.... बरसना ही पड़ा.... शुक्रिया। ....शाब्दिक आईना दिखलाने के लिये शुक्रिया।
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर
आदरणीय संजय भास्कर जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
संजय भाई , शब्दों की बूंदो को खूबसूरती भरे अंदाज में पढऩे के लिये शुक्रिया।
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर
आदरणीय यशवंत माथुर जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
अंजुरी में सहेज कर रखी, कुछ बूंदों को नई पुरानी हलचल में सराबोर करने के लिये शुक्रिया।
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर
achchha laga
ReplyDeleteआदरणीय रविकर जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
जी... शुक्रिया।
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर