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Thursday, June 23, 2011

कोशिश


जिसने चाहा मुझको,
उससे मैंने कभी,
मिलना ही नहीं चाहा?

जिसको चाहा मैंने,
उसने कभी कोशिश नहीं की,
मिलने की।

-रविकुमार बाबुल 
ग्वालियर

7 comments:

  1. वाह !

    जिसे हम प्यार करते हैं

    जिन्दगी उसके साथ बिताएं|

    या

    जो हमें प्यार करता है उसके साथ |

    बुद्धिमानी बाद में है |

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  2. यही तो त्रासदी है..................जीवन की

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  3. waah! bhut kam shabdo me sab kah diya apne...

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  4. आदरणीय रविकर जी,
    यथायोग्य अभिवादन् ।

    जी.... रविकर जी..... भटकता हुआ मेरा सवाल आपके होने के बावजूद भटकता ही रह गया। आपने जो भी बुद्धिमानी के जिस चुनरी की बात की तो जनाब इश्क में अगर सबसे पहले जो गुम होता है, उसे दिमाग (बुद्धि) ही कहते हैं? सो ईश्क है ही ऐसा......, शुक्रिया।

    रविकुमार बाबुल
    ग्वालियर

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  5. आदरणीय डॉ. निधि टण्डन जी,
    यथायोग्य अभिवादन् ।

    सच कहा आपने इश्क के मुकाबले में यह त्रांसदी अक्सर नजर आ ही जाती है। जीवन में, खैर.... ख्वाहिश है कुछ तो मिल जाये अनचाहा या मनचाहा....। शुक्रिया।

    रविकुमार बाबुल
    ग्वालियर

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  6. आदरणीय सुषमा आहुति जी,
    यथायोग्य अभिवादन् ।

    मेरा मानना है कि तमाम ग्रंथ पढ़ कर जब किसी इंसान का बदलना मुश्किल होता है, तभी ढाई आखर पढ़ कर कभी-कभी किसी की पूरी दुनियां ही बदल जाती है, शायद इसलिये ही कम शब्दों में पूरी बात अंजाने ही कह गया हूँ? शुक्रिया।

    रविकुमार बाबुल
    ग्वालियर

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