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Tuesday, June 14, 2011

यादें हरी-भरी


रविकुमार बाबुल



उसके लिखे खत को,
बहते पानी में बहाया था तुमने,
लेकिन मैं तुम्हारे लिखे खत,
बहाऊंगा नहीं?
ताऊम्र जलता रहा हूं,
तेरी याद में,
तो फिर क्यूं न तेरा खत भी
मैं जला दूं?
बनकर यह बादल,
बरस जायेगें यह,
उस तरह जैसे,
बरसती रही है तेरी याद में,
आंखे मेरी?
वक्त की मिट्टी पर,
कुछ यादें हरी-भरी रहेंगी सदा,
खुशबू उनकी,
तुम भी महसूसना,
मैं वहीं किसी गुलाब पर
तुम्हारी खुशबू के पीछे,
जब जख्मी हो रहा होउंगा?

14 comments:

  1. अच्छी शुरुवात
    आपके साथ |
    टिप्पणी भी
    कुछ देर बाद ||

    समझने दो--
    यह इश्क गरीब है
    या अभिजात ||
    बहाने से भला जलाना
    बीच में आती है
    पर्यावरण की बात |
    क्या इनको संभाल कर
    रखने की नहीं है औकात ??

    मिलते रहेंगे --
    लिखते रहें ब्लाग ||

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  2. मैं वहीं किसी गुलाब पर
    तुम्हारी खुशबू के पीछे,
    जब जख्मी हो रहा होउंगा?

    खूबसूरत अहसास

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  3. बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

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  4. मैं वहीं किसी गुलाब पर
    तुम्हारी खुशबू के पीछे,
    जब जख्मी हो रहा होउंगा?

    बहुत खूबसूरत रचना



    कृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

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  5. सुन्दर है रचना .

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  6. मैं वहीं किसी गुलाब पर
    तुम्हारी खुशबू के पीछे,
    जब जख्मी हो रहा होउंगा?

    सुंदर रचना....

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  7. आदरणीय रविकर जी,
    यथायोग्य अभिवादन् ।

    जी.....इश्क न गरीब होता है न अभिजात। हां... अमीर और गरीब कभी-कभी इश्क हो लेते है, यह अलहदा बात है? जी... यकीन है, जब इह लोक मैं त्याग दूंगा तो मेरी मिट्टी भी तमाम धार्मिक रस्मों के आसरे पर्यावरण को क्षति पहुंचायेगी, दाह संस्कार में? हिन्दू होने के नाते, मुझे दफनाने की कोशिश मजहबी लोग कहाँ करने देगें? सो... कोशिश करूँगा खत और मुझे एक साथ, एक गति मिले? कुछ आप समझा सकें मजहबी लोगों को तो... शायद बात बन जाये? मैं सदैव आपके साथ हूँ। धन्यवाद.....। तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ आपका।

    रविकुमार बाबुल
    ग्वालियर

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  8. आदरणीय कुश्वंश जी,
    यथायोग्य अभिवादन् ।

    बस यही तो रोना है..., अहसास ही खाली खूबसूरत होता? और यह अहसास, जिसके आसरे जिंदगी में बना रहता है, वह भी अगर खूबसूरत हो चले तो फिर कहना ही क्या......? जी.... शुक्रिया आपका।

    रविकुमार बाबुल
    ग्वालियर

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  9. आदरणीय सुषमा आहुति जी,
    यथायोग्य अभिवादन् ।

    जी... आपका शुक्रिया, गुलाब पर किसी खुशबू के पीछे जख्मी होना जो आपको खूबसूरत लगा, इसलिये...?

    रविकुमार बाबुल
    ग्वालियर

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  10. आदरणीय संजय भास्कर जी,
    यथायोग्य अभिवादन् ।

    ओह... संजय भाई, यह जान कर अच्छा लगा कि कविता की अंतिम पंक्तियों ने आपका मन मोह लिया। चलिये भले ही अंत कुछ तो सार्थक रहा। साफगोई के लिये शुक्रिया।

    रविकुमार बाबुल
    ग्वालियर

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  11. आदरणीय संगीता स्वरूप (गीत) रचना जी,
    यथायोग्य अभिवादन् ।

    खूबसूरत बन पड़ी, इसके लिये शुक्रिया। वर्ड वैरिफिकेशन हटा लिया है। अब शायद दिक्कत नहीं। आपका आना अच्छा लगा।

    रविकुमार बाबुल
    ग्वालियर

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  12. आदरणीय शिखा जी,
    यथायोग्य अभिवादन् ।

    मैंने अच्छा लिखने की कोशिश की थी, यह सुन्दर भी बन पड़ा, यह जानकर बहुत अच्छा लगा। भविष्य में भी इसकी पुर्नावृत्ति हो सके, कोशिश करूंगा।

    रविकुमार बाबुल
    ग्वालियर

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  13. आदरणीय वीना जी,
    यथायोग्य अभिवादन् ।

    खुशबू के पीछे जख्मी होना, कब रचना की सुन्दरता का पैमाना बन गया, मुझे अहसास ही नहीं हुआ? आपका आना अच्छा लगा, शुक्रिया।

    रविकुमार बाबुल
    ग्वालियर

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