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Saturday, March 31, 2012

अंधेरे ....!

आओ, सिमट जाएं, हम
अंधेरे में ...
जब -
उजाला होगा
तब -
फिर चल पड़ेंगे ...
सच !
मान जाओ, बात मेरी
ये अंधेरे, यूँ ही नहीं होते....... !!
  
-- मित्र श्याम उदय जी की रचना  !

2 comments:

  1. वाह
    गजब अभिव्यक्ति | बिलकुल सही ||
    बधाई महोदय |

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  2. रोकने के लिए..अच्छा बहाना है.

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