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Wednesday, March 7, 2012

पीड़ा


मेरे

व्यथित ह्रदय में
सागर की
उच्च हिलोरें 
करुणा
लेती अंगडाई
पहुंची 

नयनों से मिलने । 

दिन बैरी 
मधुर मिलन का 
रात आयी
ले स्वप्न सलोने
मिलकर
अतीत की यादे 
पहुंची 
नयनों में बसने ।

नयनों की 
स्वीकृति पाकर
स्मृति ने
किया बसेरा
भर आयीं
निष्ठुर आंखें
पल भर में

जाने कैसे ?

आंखों का
खारा पनि
आता
पलकों से लड़कर
चुम्बन 
करता गालो पर
गिरता 
बंकर दो झरने ।

होंठों पर
आयी पीड़ा 
पी जाती
मर्म कहानी

अंतस की
प्यास बुझाकर 
मुंद जाती
प्यासी आंखें ।


आंखों की
सारी पीड़ा 

बह जाती 
बनकर पानी 
रह जति
सूनी आंखें 
मरुस्थल की
एक कहानी । 

मैं जागा 
जब निद्रा से
सूखी थी
मेरी आंखें 
थी अलसाई - सी
पलकें,

विस्मृत 
थी सारी बातें ।

था खड़ा 
दिवस दिनकर संग
फैलाये 
अपनी बाहें 
अभिनन्दन 
करती किरणें 
बैठी थी
बनकर राहें 

2 comments:

  1. बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति

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