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Friday, March 16, 2012

क्यूंकि मैं एक लड़का नहीं


क्यूंकि मैं एक लड़का नहीं,
तो क्या मेरी भावनाएं मेरे आंसू कुछ भी नहीं?
क्या मैं एक पत्थर हूँ?
तुमने झुकाना चाहा तो झुक गयी,मनाना चाहा तो मान गयी,
क्या मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं?
या ये मेरा घर ही नहीं और मुझे बोलने का कोई अधिकार ही नहीं?
मुझे इंसान से एक पत्थर बना डाला
जिसे खुद से जीने का कोई अधिकार नहीं
 मैं तो तुम्हारे हाथ की कठपुतली हूँ
जैसे  तुम  चाहो नचा लो
मेरी भावनाएं और मेरे आंसू कुछ भी नहीं
क्यूंकि मैं एक लड़का नहीं

3 comments:

  1. achcha hai aap ladaka nhi hai ladako ko bhi bahut kuchh sahna padata hai per sayad sabhi ladako ko nhi

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    1. Mein aapke kathan se sahmat nahi hun...Ladkiyon ko bahut kuchh sahna padta hai shadi se pahle or baad me bhi..Bahut sambhav hai ki ladkon ko bhi kathinaiyan aati honge parntu unka apna ghar nahi chhutta hai

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  2. kair koi bat nhi aapko ladki hone se kya paresani hai mai nhi janta per ghar nhi chhutta hai to kya hua per bahut kuchh toot jaroor jata hai.............

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