Saturday, March 31, 2012
Wednesday, March 28, 2012
Sunday, March 25, 2012
रिश्तों की आग बुझाने बैठे हो तुम
दोपहर में बुझा-बुझा सा है सूरज आज।
देखा जब, टूटा दीपक का ख्वाब आज।
कल अंधियारा सौंपा था उसने मुझको,
और पराया हुआ अपना ही साया आज।
रिश्तों की आग बुझाने बैठे हो तुम,
मैंनें इक चिंगारी सुलगाई है आज।
कुछ दूरी थी अन्तर्मन की, करीब मैं आया,
मंजिल भूला, राह भटका मैं फिर आज।
सौंधी मिट्टी, महकते फूल, चहकते पंछी,
इनमें बस तू ही तू मुझको दिखता है आज।
- रविकुमार बाबुल
चित्र : साभार गूगल
Friday, March 23, 2012
"प्यार हो गया है..."
जब से उन्हें देखा है
कुछ हो सा गया है
रातों को नींद नहीं
दिन का चैन नहीं
ये क्या हो गया है ???
क्या प्यार हो गया है !!!
उसके नाम से धड़कता है दिल
तड़पता है दिल
उसके सपने देखा करता है दिल
उसकी यादों में खोया रहता है दिल
ये क्या हो गया है ???
क्या प्यार हो गया है !!!
क्या नज़र थी उसकी
क्या अदा थी उसकी
क्या देखती थी वह
क्या चलती थी वह
ये क्या हो गया है ???
क्या प्यार हो गया है !!!
मिलने को उनसे
दिल बेक़रार रहता है
प्यार के इजहार को
दिल बेक़रार रहता है
लगता है सच मुझे कुछ हो गया है !!!
शायद मुझे प्यार हो गया है !!!
Saturday, March 17, 2012
"तेरी अंगूठी"
एक जिंदा निशानी है
मेरे हर सांस में बहती
बस तेरी रवानी है
तुम्हे याद न हो शायद
मैं तुम्हें बताता हूँ
तेरी दी हुई "अंगूठी" ही
बीते यादों की निशानी है....
एहसास आज भी तेरा
बहता रगों में लहू बनकर
तुम दूर हो नहीं सकती
ये बात तुम्हे बतानी है
तुम्हें भूलूं तो कैसे मैं ,
इजाजत है नहीं मुझको
तुझे भूलने की सोचूं तो
भी तेरी याद आती है...
तुने दूर जाने को कहा
सो लो मैं चला गया
लगा ज़िन्दगी रुक सी गयी
ये बात तुम्हे बतानी है
अब साँस तो बस मेरी
तेरी याद में चला करती है
इन आखों में तो बस
तेरी तस्वीर बसा करती है....
मेरे पास आज भी तेरी
एक जिंदा निशानी है
तेरी दी हुई "अंगूठी" ही
बीते यादों की रवानी है !!!!
Friday, March 16, 2012
क्यूंकि मैं एक लड़का नहीं
क्यूंकि मैं एक लड़का नहीं,
तो क्या मेरी भावनाएं मेरे आंसू कुछ भी नहीं?
क्या मैं एक पत्थर हूँ?
तुमने झुकाना चाहा तो झुक गयी,मनाना चाहा तो मान गयी,
क्या मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं?
या ये मेरा घर ही नहीं और मुझे बोलने का कोई अधिकार ही नहीं?
मुझे इंसान से एक पत्थर बना डाला
जिसे खुद से जीने का कोई अधिकार नहीं
मैं तो तुम्हारे हाथ की कठपुतली हूँ
जैसे तुम चाहो नचा लो
मेरी भावनाएं और मेरे आंसू कुछ भी नहीं
क्यूंकि मैं एक लड़का नहीं
Thursday, March 15, 2012
Wednesday, March 14, 2012
क्यों तुमने इतना एहसान जता कर छोड़ दिया, 'क्यों पत्थर दिल को प्यार सिखा कर छोड़ दिया
क्यों तुमने इतना एहसान जता कर छोड़ दिया
'क्यों पत्थर दिल को प्यार सिखा कर छोड़ दिया
इन आवारा जानवरों की बस्ती में
क्यों तुमने हांक लगा कर छोड़ दिया
दिन रात शराब और जुवां, मस्ती से कटती
क्यों तुमने अच्छा इंसान बनाकर छोड़ दिया
पहले जैसा था सब कहते है अच्छा था
क्यों तुमने भगवान् दिखाकर छोड़ दिया
ये दुनिया दारी मेरे बस के बहार है मैंने समझाया था
'मनी' क्यों तुमने दुनिया का पाठ पढ़ाकर छोड़ दिया
---------------------------------------------मनीष शुक्ल
Tuesday, March 13, 2012
हिन्दी कविता और हम - HINDI KAVITA AUR HUM: परछाई के खातिर कब तक.... सूरज को पीठ दिखाऊंगा
हिन्दी कविता और हम - HINDI KAVITA AUR HUM: परछाई के खातिर कब तक.... सूरज को पीठ दिखाऊंगा: मजबूरी की मंजूरी है या मंजूरी की मजबूरी है ख्वाबों की हकीक़त से ये जाने कैसी दूरी है टूटा- चिटका सच बेहतर है उजले उजले धोख...
मत करना अफ़सोस मेरा
रोली और चन्दन
माथे पर
रचकर करना अभिषेक मेरा
मैं जाऊं
जग ये छोड़ कभी
तो मत करना अफ़सोस मेरा ।
गंगा जल से तुम
नहला कर
करना पावन ये शरीर मेरा
मैं जाऊं
जग ये छोड़ कभी
तो मत करना अफ़सोस मेरा ।
माथे पर
भू की धूल लगा
कर देना तुम श्रंगार मेरा
आ जाये
मेरी याद कभी
तो मत करना अफ़सोस मेरा ।
श्रध्दा के फूल
चढा देना
ना करना तुम
विश्वास मेरा
हों सकता है मैं
ना लौटूं
तो मत करना अफ़सोस मेरा ।
जाने वालो पर
चला नही
क्या ज़ोर तेरा ? क्या ज़ोर मेरा ?
मैं जाऊं
जब सब छोड़ कभी
तो मत करना अफ़सोस मेरा ।
कागज़ के पृष्ठों पर
ये अक्षर
कर जाएँ जब नाम मेरा
तुम भी
प्यारी कविता रचकर
पूरा करना ये काम मेरा ।
आंखों का काजल
गालों पर लाकर
अपमानित मत करना
कोई चोट लगाए
मन को कभी
तो हंसकर दुःख
कम कर लेना ।
ये मर्म सुरों का
समझ ना पाया
जीते जी संसार तेरा
सुर तेरे
जब दोहराये सभी
तो मत करना अफ़सोस मेरा ।
जिन गीतों में थे
प्राण बसें
उनसे अब मेरा क्या नाता ?
कोई गीत मेरा
याद आये कभी
तो मत करना अफ़सोस मेरा ।
रचकर करना अभिषेक मेरा
मैं जाऊं
जग ये छोड़ कभी
तो मत करना अफ़सोस मेरा ।
गंगा जल से तुम
नहला कर
करना पावन ये शरीर मेरा
मैं जाऊं
जग ये छोड़ कभी
तो मत करना अफ़सोस मेरा ।
माथे पर
भू की धूल लगा
कर देना तुम श्रंगार मेरा
आ जाये
मेरी याद कभी
तो मत करना अफ़सोस मेरा ।
श्रध्दा के फूल
चढा देना
ना करना तुम
विश्वास मेरा
हों सकता है मैं
ना लौटूं
तो मत करना अफ़सोस मेरा ।
जाने वालो पर
चला नही
क्या ज़ोर तेरा ? क्या ज़ोर मेरा ?
मैं जाऊं
जब सब छोड़ कभी
तो मत करना अफ़सोस मेरा ।
कागज़ के पृष्ठों पर
ये अक्षर
कर जाएँ जब नाम मेरा
तुम भी
प्यारी कविता रचकर
पूरा करना ये काम मेरा ।
आंखों का काजल
गालों पर लाकर
अपमानित मत करना
कोई चोट लगाए
मन को कभी
तो हंसकर दुःख
कम कर लेना ।
ये मर्म सुरों का
समझ ना पाया
जीते जी संसार तेरा
सुर तेरे
जब दोहराये सभी
तो मत करना अफ़सोस मेरा ।
जिन गीतों में थे
प्राण बसें
उनसे अब मेरा क्या नाता ?
कोई गीत मेरा
याद आये कभी
तो मत करना अफ़सोस मेरा ।
किसलिये
अर्थ की
किस चाह से
संवेदना
की भीड़ में
खुद को
ढून्ढ्ता हूँ मैं
किसलिये - किसलिये ?
जीर्ण - शीर्ण
राह पर
तिमिर से
खुद घिरा हुआ
प्रकाश
खोजता हूँ मैं
किसलिये - किसलिये ?
धर्म के
इतिहास पर
असत्य के
हर मंच पर
सत्य
बोलता हूँ मैं
किसलिये - किसलिये ?
देश के
उत्थान में
पतन की
हर एक राह को
नित्य
त्यागता हूँ मैं
किसलिये - किसलिये ?
दर्द की
अभिव्यक्ति को
कलम से
मै निकालता
और
पंक्तियों में डालता हूँ
किसलिये - किसलिये ?
अश्रुओं की धार में
क्यों कंटकों की सेज पर ?
स्नेह
ढून्ढ्ता हूँ मै
किसलिये - किसलिये ?
स्वार्थ के
किस लोभ से ?
किस
व्यथा की टीस से ?
तुझको
पूजता हूँ मै
किसलिये - किसलिये ?
दुःख - दर्द
अपना भूलकर
सुख को
सहेली मानकर
मैं चैन तेरा
खोजता हूँ
किसलिये - किसलिये ?
संवेदना
की भीड़ में
खुद को
ढून्ढ्ता हूँ मैं
किसलिये - किसलिये ?
जीर्ण - शीर्ण
राह पर
तिमिर से
खुद घिरा हुआ
प्रकाश
खोजता हूँ मैं
किसलिये - किसलिये ?
धर्म के
इतिहास पर
असत्य के
हर मंच पर
सत्य
बोलता हूँ मैं
किसलिये - किसलिये ?
देश के
उत्थान में
पतन की
हर एक राह को
नित्य
त्यागता हूँ मैं
किसलिये - किसलिये ?
दर्द की
अभिव्यक्ति को
कलम से
मै निकालता
और
पंक्तियों में डालता हूँ
किसलिये - किसलिये ?
अश्रुओं की धार में
क्यों कंटकों की सेज पर ?
स्नेह
ढून्ढ्ता हूँ मै
किसलिये - किसलिये ?
स्वार्थ के
किस लोभ से ?
किस
व्यथा की टीस से ?
तुझको
पूजता हूँ मै
किसलिये - किसलिये ?
दुःख - दर्द
अपना भूलकर
सुख को
सहेली मानकर
मैं चैन तेरा
खोजता हूँ
किसलिये - किसलिये ?
परछाई के खातिर कब तक.... सूरज को पीठ दिखाऊंगा
मंजूरी की मजबूरी है
ख्वाबों की हकीक़त से
ये जाने कैसी दूरी है
टूटा- चिटका सच बेहतर है
उजले उजले धोखे से
कुछ मौके पर तुम मुकरे हो
कुछ मौकों पर गलत थे हम
धुंआ धुंआ फैले थे तुम
हवा हवा संवरे थे हम
अब खुद को कितना मौका दूंगा
कितना मै समझाऊंगा
परछाई के खातिर कब तक
सूरज को पीठ दिखाऊंगा
ये जिंदगी की दौड़ है
यहाँ हारना भी जरूरी था
यहाँ जीतना भी जरूरी है
मजबूरी की मंजूरी है या
मंजूरी की मजबूरी है
ख्वाबों की हकीक़त से
ये जाने कैसी दूरी है
Wednesday, March 7, 2012
तुम्हारा अविश्वसनीय प्रेम
अग्नि के सात फेरे
और
चुटकी भर सिन्दूर
दूर कर देगा
मुझे
तुम्हारे पास से
लेकिन !
क्या वे अनगिनत फेरे
जो
भावनाओ की दहलीज़ पर
हमने
साथ साथ लगाए
वे सब
शून्य हों जायेंगे ।
एक अजनबी के
तन का स्पर्श
और
मात्र रिवाजो की झूठी डोर
तुम्हे मेरे
मन के असंख्य स्पर्शो
और
जन्मों के बन्धन से
दूर ले जायेगी
लेकिन !
क्या नियति के आगे
घुटने टेक देगा
मेरा विश्वास ?
जो मुझे तुमसे मिल था ।
किसी का झूठा विश्वास
पाने की खातिर
झुठला दी जाएँगी
वे सभी
संकल्पित सौगंधे
टूट जाएगा विश्वास
और छिन्न - भिन्न हों जायेगी
मेरी तुमसे
सारी अभिन्नातायें
सिर्फ
मान्यताओं को निभाने की खातिर ।
जीत होगी भाग्य की
और
मेरा निश्चय हार जाएगा
टूट जाएगा भ्रम मेरा
मेरा विश्वास डोल जाएगा
स्वप्न बौने हों जायेंगे
वास्तविकता के धरातल पर
रह जायेगी
तो सिर्फ प्रतीक्षा
तुम्हारे वापस आने की ।
मंगलसूत्र के चांद मोती
खंडित कर देंगे
हमारे प्रेम सूत्र को
सुहाग रात की सेज रौंद डालेगी
हमारे बीच के विश्वास को
मंडप की वेदी
हिला देगी
प्रेम का निश्चय स्तम्भ
मगर फिर भी
महकता रहेगा मेरे अन्तस में
तुम्हारा अविश्वसनीय प्रेम ।
चुटकी भर सिन्दूर
दूर कर देगा
मुझे
तुम्हारे पास से
लेकिन !
क्या वे अनगिनत फेरे
जो
भावनाओ की दहलीज़ पर
हमने
साथ साथ लगाए
वे सब
शून्य हों जायेंगे ।
एक अजनबी के
तन का स्पर्श
और
मात्र रिवाजो की झूठी डोर
तुम्हे मेरे
मन के असंख्य स्पर्शो
और
जन्मों के बन्धन से
दूर ले जायेगी
लेकिन !
क्या नियति के आगे
घुटने टेक देगा
मेरा विश्वास ?
जो मुझे तुमसे मिल था ।
किसी का झूठा विश्वास
पाने की खातिर
झुठला दी जाएँगी
वे सभी
संकल्पित सौगंधे
टूट जाएगा विश्वास
और छिन्न - भिन्न हों जायेगी
मेरी तुमसे
सारी अभिन्नातायें
सिर्फ
मान्यताओं को निभाने की खातिर ।
जीत होगी भाग्य की
और
मेरा निश्चय हार जाएगा
टूट जाएगा भ्रम मेरा
मेरा विश्वास डोल जाएगा
स्वप्न बौने हों जायेंगे
वास्तविकता के धरातल पर
रह जायेगी
तो सिर्फ प्रतीक्षा
तुम्हारे वापस आने की ।
मंगलसूत्र के चांद मोती
खंडित कर देंगे
हमारे प्रेम सूत्र को
सुहाग रात की सेज रौंद डालेगी
हमारे बीच के विश्वास को
मंडप की वेदी
हिला देगी
प्रेम का निश्चय स्तम्भ
मगर फिर भी
महकता रहेगा मेरे अन्तस में
तुम्हारा अविश्वसनीय प्रेम ।
पीड़ा
मेरे
व्यथित ह्रदय में
सागर की
उच्च हिलोरें
करुणा
लेती अंगडाई
पहुंची
नयनों से मिलने ।
दिन बैरी
मधुर मिलन का
रात आयी
ले स्वप्न सलोने
मिलकर
अतीत की यादे
पहुंची
नयनों में बसने ।
नयनों की
स्वीकृति पाकर
स्मृति ने
किया बसेरा
भर आयीं
निष्ठुर आंखें
पल भर में
जाने कैसे ?
आंखों का
खारा पनि
आता
पलकों से लड़कर
चुम्बन
करता गालो पर
गिरता
बंकर दो झरने ।
होंठों पर
आयी पीड़ा
पी जाती
मर्म कहानी
अंतस की
प्यास बुझाकर
मुंद जाती
प्यासी आंखें ।
आंखों की
सारी पीड़ा
बह जाती
बनकर पानी
रह जति
सूनी आंखें
मरुस्थल की
एक कहानी ।
मैं जागा
जब निद्रा से
सूखी थी
मेरी आंखें
थी अलसाई - सी
पलकें,
विस्मृत
थी सारी बातें ।
था खड़ा
दिवस दिनकर संग
फैलाये
अपनी बाहें
अभिनन्दन
करती किरणें
बैठी थी
बनकर राहें
सागर की
उच्च हिलोरें
करुणा
लेती अंगडाई
पहुंची
नयनों से मिलने ।
दिन बैरी
मधुर मिलन का
रात आयी
ले स्वप्न सलोने
मिलकर
अतीत की यादे
पहुंची
नयनों में बसने ।
नयनों की
स्वीकृति पाकर
स्मृति ने
किया बसेरा
भर आयीं
निष्ठुर आंखें
पल भर में
जाने कैसे ?
आंखों का
खारा पनि
आता
पलकों से लड़कर
चुम्बन
करता गालो पर
गिरता
बंकर दो झरने ।
होंठों पर
आयी पीड़ा
पी जाती
मर्म कहानी
अंतस की
प्यास बुझाकर
मुंद जाती
प्यासी आंखें ।
आंखों की
सारी पीड़ा
बह जाती
बनकर पानी
रह जति
सूनी आंखें
मरुस्थल की
एक कहानी ।
मैं जागा
जब निद्रा से
सूखी थी
मेरी आंखें
थी अलसाई - सी
पलकें,
विस्मृत
थी सारी बातें ।
था खड़ा
दिवस दिनकर संग
फैलाये
अपनी बाहें
अभिनन्दन
करती किरणें
बैठी थी
बनकर राहें
Tuesday, March 6, 2012
यू तो अक्सर खाव्बो में तुम मुझसे मिलने आती हों पर कभी कभी दुःख होता है जब तुम साथ नहीं होती
यू तो अक्सर खाव्बो में तुम मुझसे मिलने आती हों
पर कभी कभी दुःख होता है जब तुम साथ नहीं होती
सोच के थोडा हँसता हू मै जो बाते तुमसे करता हू
पर एक तुम्ही तो हों जिससे मै सारी बाते कर लेता हू
पर बहुत मुश्किल शयद तुमको खाव्बो से बाहर ला पाना
पर तुम भी तो जिद्दी हों थोड़े से झगडे में इतना गुस्सा हों जाती हों
सब कहते है तुम पागल हों वो मात्र एक कल्पना है
मै कैसे उनको समझाऊ की तुम एक हकीकत लगती हों
;मनी;इतना तो तय है जब हम साथ साथ होते है
एक अजीब सी ताकत हिम्मत अपने आप आ जाती है
वादा करो तुम आओगी फिर हम होली संग संग खेलेंगे ;HAPPY HOLI;
--------------------------------मनीष शुक्ल
Saturday, March 3, 2012
थिंक हट के...
कोई रूठे यहाँ तो कौन मनाने आता है
रूठने वाला खुद ही मान जाता है,
ऐ अनिश दुनियां भूल जाये कोई गम नहीं
जब कोई अपना भूल जाये तो रोना आता है...
जब महफ़िल में भी तन्हाई पास हो
रौशनी में भी अँधेरे का अहसास हो,
तब किसी कि याद में मुस्कुरा दो
शायद वो भी आपके इंतजार में उदास हो...
फर्क होता है खुदा और पीर में
फर्क होता है किस्मत और तक़दीर में
अगर कुछ चाहो और ना मिले तो
समझ लेना कि कुछ और अच्छा है हाथो कि लकीर में.
नीलकमल वैष्णव"अनिश"
०९६३०३०३०१०, ०७५६६५४८८००
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