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Saturday, December 17, 2011

मनी'ये तय है की एक दिन तुम खुद को साबित करोगे ,जीतोगे मगर इस आज का क्या जो , बड़ी बेदर्दी से झीना जा रहा है यहाँ

'मनी'क्या ऐसा भी होता है कही जैसा हो रहा है यहाँ 
बचपन को कुचला मासूमियत को लूटा जा रहा है यहाँ 

जिन बच्चो के हाथ अभी सही से झुनझुना बजाना भी नहीं सीखे 
वो खुद को मिटा के सबकुछ भुला के घर का खर्च उठा रहे है यहाँ 

अजीब रहमो करम पे जिन्दा है ये ,ये कैसी दुआए है 
की किसी की भी दुआ इनके काम नहीं आ रही है यहाँ 

इतना कठिन देखकर ये सब भावो से भर जाता हू मै ,कभी कभी रो जाता हू,मनी '
फ़रिश्ते कहू या दुनिया के सबसे होनहार जिन्हें कोई मौका नहीं दिया जा रहा है यहाँ 

मनी'ये तय  है की एक दिन तुम  खुद को साबित करोगे ,जीतोगे 
मगर इस आज का क्या जो , बड़ी बेदर्दी से झीना जा रहा है यहाँ 
                                            ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मनीष शुक्ल 





6 comments:

  1. वाह वाह
    ये तय है की एक दिन तुम खुद को साबित करोगे ,जीतोगे
    मगर इस आज का क्या जो , बड़ी बेदर्दी से झीना जा रहा है यहाँ

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  2. सुन्दर शब्दावली, सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  3. ... प्रशंसनीय रचना - बधाई

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