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Friday, December 23, 2011

फिर तेरी याद आयी



 भीनी भीनी सी मिट्टी की महक आयी
ओस की बूंदों से पत्तो पर चमक आयी 
पीछे मुड़कर जब देखा मैंने 
तो याद तेरी फिर आयी 

अँधेरे  को दूर कर सूरज की रोशनी आयी 
सन्नाटे को चीरती चिडियों की चहचाहट आयी 
राज कई बंद हैं सीने में मेरे 
और उन्हें खोलने हँसी तेरी फिर आयी 

तेरी बातो का जादू हैं कुछ ऐसा
पत्थर भी सुनने लगे हैं ये कुछ ऐसा 
मधुशाला की और बढ़ते हुए मेरे कदमो को रोकने 
तेरी नशीली निगाहे  फिर आयी 

मुस्कुराते हुए वो पल फिर आये ,
तेरी जुल्फों  की छाव ले आये 
सोचा था फिर होगी मुलाकात तुझसे 
पर तुझे मुझसे छिनने  
ज़माने के ये रिवाज फिर आये .
(चिराग )

3 comments:

  1. बहुत ही खुबसूरत और कोमल भावो की अभिवयक्ति......

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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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  3. अच्छी कविता है ..बधाई

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