अपनों को राहों में यू ही छोड़ा नहीं जाता
रिश्ता बनाया जाता है रिश्ता तोडा नहीं जाता
माना की फासले भी अब बढ़ गए है बहुत
फसलो के डर से रुख बस्ती से मोड़ा नहीं जाता
मनी'ये अपने लोग है जिनकी दुआए साथ चलती है
जब तक न हों पूरा सफ़र,सफ़र छोड़ा नहीं जाता
अपने ही लोग है जो तारीफों के पुल बाधते थकते नहीं
और पुल से गुजरा जाता है पुल तोडा नहीं जाता
हों सकता है कभी उनसे भी हों जाये कुछ खामिया
आखिर वो भी इंसान है और इंसानों का दिल तोडा नहीं जाता
` ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मनीष शुक्ल
वाह मनीष जी ,क्या बात है.खूब लिखा है आपने.
ReplyDeleteवाह मनीष जी सुन्दर खूब लिखा है.....
ReplyDeleteसुन्दर एवं प्रेरक रचना.....
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार दिनेश जी ,,,
ReplyDeletepoint ji aap bhi prem ke liye likhte ho aur mai bhi,,,,,,,,,dhnyvaad
ReplyDeletebas sanjay ji aajkal likh raha hu
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